दादाभाई नौरोजी का योगदान महत्वपूर्ण

Last Updated 29 Jun 2010 09:38:00 AM IST

'भारतीय राजनीति के पितामह’ कहे जाने वाले प्रख्यात राजनेता, उघोगपति, शिक्षाविद और विचारक दादाभाई नौरोजी ने ब्रिटिश उपनिवेश के प्रति बुद्धिजीवी वर्ग के सम्मोहन के बीच उसकी स्याह सचाई को सामने रखने के साथ ही कांग्रेस के लिये राजनीतिक जमीन भी तैयार की थी।


पुण्यतिथि 30 जून पर विशेष

जिंदगी में शुरूआती कठिनाइयों से पार पाकर कामयाबी का फलक छूने वाले नौरोजी वर्ष 1892 में हुए ब्रिटेन के आम चुनावों में लिबरल पार्टी के टिकट पर फिन्सबरी सेंट्रल से जीतकर भारतीय मूल के पहले ब्रितानी सांसद बने थे।

लेखक सुभाष गताडे ने बताया कि नौरोजी ने ब्रितानी हुकूमत के पैरों तले रौंदे जा रहे भारत की दुर्दशा को एक सच्चे भारतीय के रूप में देखा और उसके खिलाफ अलग अंदाज में आवाज उठाई।

उन्होंने बताया कि नौरोजी ने ’पावर्टी एण्ड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया’ किताब लिखकर भारत में ब्रितानी उपनिवेश की लूट-खसोट को जगजाहिर किया।

उस वक्त का बुद्धिजीवी वर्ग ब्रिटेन की उपनिवेश नीति का समर्थन करता था लेकिन नौरोजी की किताब ने उसकी आंखें खोल दीं।गताडे के मुताबिक नौरोजी ने देश में कांग्रेस की राजनीति का आधार तैयार किया था।

उन्होंने कांग्रेस के पूर्ववर्ती संगठन ईस्ट इंडिया एसोसिएशन के गठन में मदद की थी। बाद में वर्ष 1886 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। उस वक्त उन्होंने कांग्रेस की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाई।

गताडे ने बताया कि वर्ष 1906 में नौरोजी दोबारा कांग्रेस के अध्यक्ष बने और देश की तत्कालीन परिस्थितियों का गहराई से अध्ययन करके पार्टी को उसके मुताबिक मिजाज दिया।

नौरोजी गोपाल कृष्ण गोखले और महात्मा गांधी के सलाहकार भी थे।चार सितम्बर 1825 को गुजरात के नवसारी में जन्मे नौरोजी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था लेकिन तमाम दुश्वारियों पर विजय प्राप्त करके उन्होंने शिक्षा ग्रहण की और महज 25 बरस की उम्र में एलफिनस्टोन इंस्टीट्यूट में लीडिंग प्रोफेसर के तौर पर नियुक्त होने वाले पहले भारतीय बने।

उन्होंने वर्ष 1855 तक बम्बई में गणित और दर्शन के प्रोफेसर के रूप में काम किया। बाद में वह कामा एण्ड कम्पनी में साझेदार बनने के लिये लंदन गए।

वर्ष 1859 में उन्होंने नौरोजी एण्ड कम्पनी के नाम से कपास का व्यापार शुरू किया।कांग्रेस के गठन से पहले वह सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी द्वारा स्थापित इंडियन नेशनल एसोसिएशन के सदस्य भी रहे। यह संगठन बाद में कांग्रेस में विलीन हो गया।नौरोजी का 30 जून 1917 को 92 वर्ष की उम्र में मुम्बई में निधन हो गया।


 



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