एकल परिवार से बेहतर संयुक्त परिवार

Last Updated 15 May 2011 09:43:47 AM IST

बदलते वैश्विक परिदृश्य में नौकरी के लिए बाहर जाने से संयुक्त परिवार एकल परिवारों में तब्दील हो रहे हैं.


आज 15 मई है. आज ही इंटरनेशनल फैमिली डे मनाया जाता है.

आज के बदलते सामाजिक परिदृश्य में संयुक्त परिवार तेजी से टूट रहे हैं और उनकी जगह एकल परिवार लेते जा रहे हैं, लेकिन मनोचिकित्सकों की मानें तो आज की बदलती जीवनशैली और प्रतिस्पर्धा के दौर में तनाव तथा अन्य मानसिक समस्याओं से निपटने में अपनों का साथ अहम भूमिका निभा सकता है.

अपोलो अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट साइकाइट्री डॉ. प्रो. नीटू नारंग ने कहा कि संयुक्त परिवारों की सबसे बड़ी विशेषता उससे मिलने वाला भावनात्मक और नैतिक सहारा है.

उन्होंने कहा, घर में बड़े-बूढ़ों की मौजूदगी एक परामर्शदाता का काम करती है. घर में उनकी गैरहाजिरी में किसी समस्या या तनाव की स्थिति में सलाह या सहारा देने के लिए कोई मौजूद नहीं होता.

डॉ. नारंग ने कहा, एकल परिवारों के सदस्यों को अकेलेपन का सामना भी करना पड़ता है. खासकर तब जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और स्कूल या कॉलेज जाना शुरू कर देते हैं.

उन्होंने कहा, एकल परिवारों में जब तक बच्चे छोटे रहते हैं तब तक पता नहीं चलता लेकिन उनके स्कूल या कॉलेज जाना शुरु करने पर माता-पिता को अधिक अकेलापन महसूस होता है, इसे ‘इंपिटिव सिंड्रोम’ कहते हैं. ऐसे में यदि संयुक्त परिवार है तो घर में कई सदस्य मौजूद होते हैं जिस कारण अकेलेपन का अहसास नहीं हो पाता.

डॉ. नारंग ने अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां अकेलापन एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में उभरकर सामने आ रहा है और इसका एक बड़ा कारण यह है कि वहां एकल परिवारों का ही चलन है.

परिवार की अहमियत बताते हुए मनोचिकित्सक डॉ संदीप वोहरा ने कहा कि संयुक्त परिवारों में आस पास काफी लोगों की मौजूदगी एक सहारे का काम करती है.

उन्होंने कहा, परिवार में कई लोग होने से आप उनसे अपनी भावनाएं, समस्याएं बांट सकते हैं, जबकि एकल परिवारों के सदस्य कई बार बाहरी लोगों से आसानी से घुलमिल नहीं पाते.डॉ. वोहरा ने कहा कि परिवार में मौजूद सदस्य वास्तव में सलाहकार, दोस्त और मददगार की भूमिका अदा करते हैं.

उन्होंने कहा कि युवाओं में अक्सर देखने में आता है कि वह कुछ समस्याओं के बारे में सबसे बात नहीं कर पाते और तनाव में आ जाते हैं. ऐसे में यदि परिवार का साथ हो इससे निपटने में काफी मदद मिल सकती है.

दूसरी ओर एकल परिवारों की संख्या में बढ़ोतरी के कारणों की चर्चा करते हुए समाजशास्त्री सुरेन्द्र एस जोधक ने कहा कि आज लोगों की बदलती प्राथमिकताएं और जरूरतें संयुक्त परिवारों के टूटने के लिए जिम्मेदार हैं.

उन्होंने कहा, आज का बदलता वैश्विक परिदृश्य, नौकरी आदि के लिए लोगों के बाहर जाने के कारण संयुक्त परिवार एकल परिवारों में तब्दील हो रहे हैं.

जोधक ने कहा, पहले लोग गांवो, कस्बों में रहते थे जहां उनकी जमीन, संपत्ति आदि होने के कारण संयुक्त परिवार देखने को मिलते थे, लेकिन नौकरी वगैरह के लिए लोगों के बाहर जाने के कारण एकल परिवारों की संख्या बढ़ रही है.

उन्होंने कहा कि बिजनेस करने वालों के घरों में आज भी संयुक्त परिवार देखने को मिल जाते हैं.

 



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