अधिकारों से वंचित है बचपन

Last Updated 14 Nov 2011 12:16:21 AM IST

विकास के तमाम प्रतिमान हमने स्थापित कर लिए लेकिन बचपन के लिए मौजूद खतरों को कम नहीं कर पाए.


बचपन पर पूरी दुनिया में खतरे हैं लेकिन अपने देश की हालत सबसे खराब है. यहां छह करोड़ से अधिक बाल मजदूर हैं. हजारों बच्चे ह्यूमन ट्रैफिकिंग के शिकार होते हैं. रोजाना हजारों बच्चे मारपीट के शिकार होते हैं. बाल अधिकारों के प्रति हम आज भी उतने सहिष्णु नहीं हो पाए हैं जितना हमें होना चाहिए.

देश में लाखों बच्चे ऐसे हैं जो उचित व्यवस्था के अभाव में मानसिक-शारीरिक शोषण के शिकार हो रहे हैं. ऐसा नहीं है कि देश में बाल अधिकारों से जुड़े कानून नहीं हैं लेकिन या तो वे इतने दोषपूर्ण हैं कि बाल अधिकारों को संरक्षण नहीं दे पा रहे या व्यवस्थागत अक्षमता के चलते इनका अमलीकरण नहीं हो रहा है. बाधाएं जैसी हों, यह तय है कि ऐसे बच्चों की कमी नहीं जिनका बचपन असमय ही छीन लिया गया है.

बाल आयोग भले ही बन गया हो लेकिन इससे ज्यादा लाभ नहीं हुआ है. बच्चों के मौलिक अधिकार की बातें कागजों तक ही सीमित हैं. समाज बच्चों को उत्तम सुविधाएं देने की अपेक्षाओं के पालन में असफल रहा है. उनकी शिक्षा-दीक्षा की उपेक्षा कर उन्हें ऐसे कामों में लगाना बदस्तूर जारी है जो उनके शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डालने वाला साबित हुआ है. ऐसे कार्य जो बच्चों के बौद्धिक, मानसिक, शैक्षिक तथा नैतिक विकास में बाधा पहुंचाएं बालश्रम की परिधि में आते हैं.

बालश्रम के उन्मूलन के लिए 1986 में बने बालश्रम उन्मूलन कानून में कई खामियां हैं. इनमें जोखिम भरे कायरे में बाल श्रमिकों के कार्य करने पर रोक लगाने को विशेष जगह दी गई है. इस कानून के अनुच्छेदों से यही प्रतिध्वनित होता है कि केवल जोखिम भरे कार्यों में लगे बच्चे ही बाल श्रमिक की परिधि में आते हैं जबकि सचाई यह है कि कोई भी स्थिति जो बच्चे को कमाई करने पर मजबूर कर रही हो, बालश्रम है और ऐसे कायरे में लगे बच्चे बाल श्रमिक. इन बाल श्रमिकों की संख्या पर लगाम लगना तो दूर अब नए किस्म के बाल श्रमिक सामने आ रहे हैं. रियल्टी शो में प्रतिभागी बच्चों को इस श्रेणी में रखा जा सकता है.

इन कार्यक्रमों को देखकर साफ लगता है कि ये बच्चों का भला नहीं कर रहे हैं बल्कि उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं. बच्चों की चंचलता, उनकी हंसी, उनका भोलापन सभी को बाजार की चीज बना दिया गया है. गौर करने वाली बात है कि ऐसे कार्यक्रमों के जरिए बच्चों में कलात्मकता-रचनात्मकता का विकास नहीं बल्कि शॉर्टकर्ट तरीके से प्रसिद्धि पाने की भावना जन्म ले रही है.

बालश्रम पर पूरी तरह रोक लगाए बगैर बच्चों को सही आजादी नहीं दी जा सकती. बालश्रम पर रोक लगाने से बेरोजगारी भी दूर होगी. अभी जिन जगहों पर छह करोड़ बच्चों से काम कराया जा रहा है अगर उनकी जगह बड़े काम करें तो यह समस्या काफी हद तक हल हो सकती है. हमें इस सचाई को भी समझना होगा कि गरीबी के कारण बालश्रम नहीं बढ़ रहा बल्कि बालश्रम के कारण गरीबी बढ़ रही है.

हमें हर बच्चे को शिक्षित करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा. इससे बालश्रम की समस्या स्वत: दूर हो जाएगी. आज शिक्षा की दिशा में बालश्रम बड़ी बाधा है. सरकार द्वारा मुफ्त शिक्षा अभियान चलाया तो जा रहा है परंतु इससे देश के सारे बच्चे जुड़ें ऐसी स्थिति अभी नहीं बन पाई है. यकीनन आने वाले कुछेक वर्षों में हमें ऐसी स्थिति बनानी होगी तभी बच्चे सचमुच देश का भविष्य बन पाएंगे.

प्रस्तुति : प्रवीण कुमार

कैलाश सत्यार्थी
लेखक एवं बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े हुए हैं


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment