ग्रामीण वैज्ञानिक की बाधा भरी राह

Last Updated 08 Sep 2011 01:05:22 AM IST

देश के एक ग्रामीण वैज्ञानिक मंगल सिंह ने न केवल देश को अरबों रुपए की बिजली व डीजल की बचत की राह दिखाई है .


बल्कि पर्यावरण-रक्षा करते हुए बड़े पैमाने पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी का अवसर भी उपलब्ध किया है. लाखों किसानों को उनकी इस खोज से सस्ती सिंचाई की सुविधा मिल सकती है और ग्रामीण कुटीर उद्योगों को बिजली भी मिल सकती है. इस आविष्कार 'मंगल टरबाइन' को पेटेंट प्राप्त हो गया है, साथ ही मौके पर जांच कर अनेक प्रतिष्ठित विशेषज्ञों और उच्च अधिकारियों ने 'मंगल टरबाइन' की प्रशंसा करते हुए इसके शीघ्र प्रसार के लिए समुचित सरकारी सहायता की सिफारिश भी की है.

इन विशेषज्ञों व उच्चाधिकारियों की संस्तुति के अनुकूल कार्य कर मंगल टरबाइन का प्रसार दूर-दूर तक किया जाता तो ऊर्जा संरक्षण, ग्रीनहाउस गैसों से बचाव व खेतों की सिंचाई की महान उपलब्धि अब तक दर्ज हो सकती थी. पर अपने देश में गांवों व कस्बों की प्रतिभाओं को जो कठिनाइयां झेलनी पड़ सकती हैं वह सब मंगल सिंह के रास्ते में भी आ खड़ी हुई हैं और इस कारण इस बेहद प्रतिभाशाली वैज्ञानिक को पेटेंट मिलने व विशेषज्ञों की मान्यता प्राप्त होने के बाद भी न्याय की तलाश में भटकना पड़ रहा है.

मंगल सिंह बुंदेलखंड के ललितपुर (उत्तर प्रदेश) जिले के एक गांव के निवासी हैं. अपने गांव की खेती-किसानी को बेहतर बनाने के संघर्षों के दौरान ही उन्होंने 'मंगल टरबाइन' के बारे में सोचना शुरू किया. आर्थिक साधन मुहैया नहीं थे पर जैसे-तैसे जुगाड़ कर और तमाम कठिनाइयां सहकर वे अपनी मंजिल तक पहुंचने में कामयाब रहे.

देश में लाखों किसान छोटी नदियों, नालों व नहरों से पानी खींचकर खेतों की सिंचाई करते हैं व इसके लिए डीजल व बिजली चालित पंपों का उपयोग करते हैं. जो कार्य अब तक डीजल या बिजली की ऊर्जा से होता रहा है, 'मंगल टरबाइन' के माध्यम से वही नदी, नहर, नालों के बहते पानी की ऊर्जा का उपयोग कर हो सकता है. इस तरह भारत जैसे बड़े देश में बहुत बड़े पैमाने पर डीजल व बिजली की बचत होगी, साथ ही ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होगा और किसानों को बिजली व डीजल पर होने वाले खर्च से मुक्ति मिलेगी.

यही नहीं, मंगल टरबाइन का थोड़ा सा विस्तार कर इसका उपयोग बिजली उत्पादन व कई कुटीर उद्योगों को चलाने के लिए भी किया जा सकता है. इस तरह गांववासियों के लिए इसकी उपयोगिता बढ़ जाएगी और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में और भी कमी आएगी. जिन विशेषज्ञ अधिकारियों व संस्थानों ने मंगल टरबाइन की जांच कर इसकी उपयोगिता की प्रशंसा की, उनकी सूची काफी लंबी है.

इतनी मान्यता और लोकप्रियता प्राप्त करने के बावजूद मंगल टरबाइन के आविष्कारक की राह में बाधाएं उत्पन्न करने वाले अधिकारियों की कोई कमी नहीं रही है. इसकी एक वजह यह रही है कि मंगल सिंह बहुत प्रतिभाशाली ग्रामीण वैज्ञानिक होने के साथ-साथ किसी भी तरह के भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं और इस कारण समय-समय पर शक्तिशाली व्यक्तियों से उलझते रहते हैं.

मंगल सिंह के साथ हुए तरह-तरह के अन्याय की शिकायतें मिलने पर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इसकी जांच करवाई व इस जांच की रिपोर्ट अब सूचना के अधिकार का उपयोग कर प्राप्त हुई है. जांचकर्ता डॉ. बी.पी. मैथानी (पूर्व निदेशक राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान) ने इस रिपोर्ट में मंगल सिंह की प्रतिभा और साहस की प्रशंसा करते हुए मंगल टरबाइन के प्रसार की संस्तुति की है व साथ ही अब तक के अन्याय के लिए मंगल सिंह की क्षतिपूत्र्ति की संस्तुति भी की है. इस मामले में उन्होंने विभिन्न षडयंत्रों का पर्दाफाश भी किया है जिनके कारण मंगल सिंह का उत्पीड़न हुआ, साथ ही राष्ट्रीय संपत्ति व प्रतिभा की क्षति हुई.

हाल में मंगल सिंह ने अपने क्षेत्र (जिला ललितपुर) में कचनदा बांध से निकलने वाली नहर के गलत निर्माण के विरुद्ध आवाज बुलंद की है. करोड़ों रुपए के निर्माण कार्य का बजट बढ़ाने के लिए भ्रष्टाचारी तत्वों ने इस नहर को गोविंदसागर नहर से जोड़ने का मूल स्थान बदला जबकि पहले से  बनी गोविंद सागर नहर का बेहतर उपयोग कर अनेक गांवों की भूमि को बचाया जा सकता था. इतना ही नहीं, अनावश्यक नहर के लिए कृत्रिम पहाड़ी बनाई गई जिसके लिए आसपास के बड़े क्षेत्र में बहुत मिट््टी खोदनी पड़ी. इससे भैलोनी लोध का तालाब व उसका बांध संकटग्रस्त हो गए हैं.
एक ओर इस तरह के भ्रष्टाचार व अन्याय के विरोध का बीड़ा उठाए तथा दूसरी ओर सिंचाई व ऊर्जा संरक्षण के रचनात्मक कार्य को आगे बढ़ाने का संकल्प मन में लिए यह प्रतिभाशाली वैज्ञानिक आज तक दर-दर भटक रहा है. क्या उसे उचित समय पर सहायता मिलेगी?

भारत डोगरा
लेखक


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