सदैव याद आएंगे
प्रतिष्ठित समाजवादी नेता शरद यादव का निधन वाकई काफी दुखद है। वह राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण (जेपी) की विचारधारा से काफी प्रभावित थे और उनकी राजनीति के तौर-तरीकों में यह दिखता भी था।
![]() प्रतिष्ठित समाजवादी नेता शरद यादव |
बिहार की राजनीति को गहरे तक प्रभावित करने वाले शरद यादव वैसे तो मध्य प्रदेश के होशंगाबाद से थे, मगर उनकी कर्मभूमि का ज्यादातर हिस्सा बिहार और उत्तर प्रदेश ही रहा। संसद के दोनों सदन के सदस्य के तौर पर उनका लंबा अनुभव रहा। उनके नहीं रहने से निश्चित तौर पर एक खालीपन दिखेगा। राजनीति में लोग अपनी छवि को लेकर बेहद संवेदनशील और सजग रहते हैं, और शरद यादव की कामकाज की शैली में यह संजीदापन हमेशा प्रस्फुटित होता रहा।
आजकल जब हम राजनेताओं के घोटालों और उनकी कार्यशैली से रोजाना दो-चार होते हैं; शरद यादव की बेदाग छवि आज के नेताओं के लिए बड़ा महत्त्वपूर्ण सीख है। निश्चित तौर पर 30 वर्ष से ज्यादा के उनके राजनीतिक कॅरियर में कभी कोई दाग नहीं लगा। यह गुण विरले नेताओं में ही होता है। बेहद शालीन, सभ्य और मृदुभाषी शरद जी लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के गुरु भाई थे। मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कराने में उनका किरदार महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
किसान परिवार से इंजीनियर बनने और फिर सार्वजनिक जीवन में उन्होंने निश्चित तौर पर खुद को सांसद और मंत्री के रूप में प्रतिष्ठित किया। दशकों तक एक उत्कृष्ट और जिम्मेदार सांसद के तौर पर देश सेवा का कार्य कर उन्होंने समानता की राजनीति को मजबूती दी। लालू को राजनीति में स्थापित करने में शरद यादव की अहम भूमिका थी। जनता दल के तमाम धड़ों में बंटे होने के बावजूद उन्होंने शोर-शराबे और शार्टकट अपनाने के बजाय अपना रास्ता बनाया।
वह देश के पहले ऐसे नेता रहे जो तीन राज्यों में चुनाव लड़े और जीतकर लोक सभा पहुंचे। निश्चित तौर पर समाजवादी विचारधारा की प्रबल आवाज आज शांत जरूर हुई है, मगर प्रेरणा बनकर हम सब की स्मृतियों में सदा कौंधती रहेगी। उनका जाना सामाजिक न्याय के आंदोलन के अहम योद्धा का जाना है। उनके निधन से भारतीय राजनीति में जो खालीपन आया है उसे कभी भरा नहीं जा सकता है।
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