निरंतर बढ़ता संकट
उत्तराखंड अनियंत्रित और अनियोजित विकास की मार से दरक रहा है और राज्यवासियों के पास चुपचाप आंसू बहाने के अलावा कोई चारा नहीं है।
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जोशीमठ में तो इमारतें कराह ही रही हैं अब जो खबरें आ रही हैं वो तो पूरे उत्त्तराखंड को दहलाने वाली हैं। खबर है कि जोशीमठ से 80 किलामीटर दूर ऋषिकेश -कर्णप्रयाग रेल लाइन की रिटेनिंग वाल में भी दरारो आ गई हैं। कर्णप्रयाग कस्बे के 50 से अधिक घरों में दरारें निवासियों के दिलों में दहशत भर रही हैं। और तो और इससे नितांत अलग रूट पर स्थित मसूरी के लंढौर कस्बे से भी सड़कों पर दरारों की सूचनाएं मिल रही हैं। इससे स्थानीय लोगों में भय और घबराहट है। भूगर्भ वैज्ञानिकों और डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की मानें तो जोशीमठ टूटे हुए पहाड़ों के जिस मलबे पर बसा है वह तेजी से धंस रहा है। अब इसे रोकना संभव नहीं लगता।
स्थिति काफी गंभीर है और यहां 50 से अधिक घर एक साथ भी ध्वस्त हो सकते हैं। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि जोशीमठ ग्लेशियर से आए मलबे पर बसा है, लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्य हैं कि जोशीमठ भूस्खलन के मलबे पर बसा है। 1976 में जोशीमठ में भूस्खलन की घटनाएं देखी गई थीं। तब गढ़वाल कमिश्नर के नेतृत्व में सरकार ने एक कमेटी बनाई थी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में निर्माण कार्यों पर पूरी तरह से रोक लगाने की सिफारिश की थी। इस रिपोर्ट में सीधे तौर पर बड़ेनिर्माण और ब्लास्टिंग नहीं करने की सलाह दी गई थी। इसके बाद भी यहां पर हाइ़ड्रो पावर और आल वेदर रोड के प्रोजेक्ट को मूर्त रूप दिया गया। जोशीमठ केदारनाथ, बद्रीनाथ समेत अन्य तीर्थ यात्राओं का एक महत्वपूर्ण गेटवे है।
जोशीमठ की सड़कों, घर, ऑफिस, मैदान, होटल, स्कूल आदि में भूमि दरकने के कारण बड़ी-बड़ी दरारें आ गई है। जोशीमठ में तमाम डेवलपमेंटल गतिविधियां भी रोक दी गई हैं। एक तो मुसीबत की मार दूसरे प्रशासन का बेरुखी भरा रवैया स्थानीय निवासियों को बेबसी के आंसू बहाने पर मजबूर कर रहा है। लोगों को न तो नोटिस दिए गए और न उचित मुआवजा लेकिन प्रशासन खतरनाक घोषित होटलों और भवनों को गिराने पर अड़ा है। मंगलवार को स्थानीय लोगों के विरोध के चलते ध्वस्तीकरण नहीं हो सका था। सिर्फ आश्वासनों के भरोसे गुजारा संभव नहीं है। पुनर्वास के लिए फैब्रिकेटेड आवास भी 20 किोमीटर दूर बन रहे हैं। ऐसा करना तो कतई उचित नहीं है।
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