तल्ख हुए तेवर

Last Updated 26 Nov 2022 01:50:08 PM IST

कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान में एक बार फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच खींचतान चरम पर है।


तल्ख हुए तेवर

राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के मध्य प्रदेश में घुसते ही दोनों नेताओं के आक्रामक तेवर कहीं से भी पार्टी के हित में नहीं हैं। खासकर मुख्यमंत्री गहलोत का पायलट को गद्दार कहना साफ बयां कर रहा है कि राज्य में अब हालात आलाकमान के हाथों से आहिस्ता-आहिस्ता फिसलता जा रहा है।

गहलोत का यह कहना कि ‘पायलट ने पार्टी के साथ गद्दारी की और उन्हें किसी भी हालत में मुख्यमंत्री नहीं बनने दूंगा’ दर्शाता है कि इन दोनों नेताओं के बीच तल्खी हद से ज्यादा बढ़ चुकी है। कांग्रेस की दुर्गति के पीछे आलाकमान की सुस्ती बड़ी वजह है। अगर वक्त रहते राजस्थान का मसला सुलटा लिया जाता तो नि:संदेह कांग्रेस की स्वीकार्यता और अनुशासन का आग्रह पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में बढ़ता। दरअसल, गहलोत सत्ता में आने के समय से ही सचिन पायलट को सहभागी के तौर पर नहीं पचा पा रहे थे।

गहलोत हमेशा ऐसा महसूस करते थे कि राज्य का मुखिया होने के समय पायलट की मौजूदगी उनकी (गहलोत) राजनीतिक पारी को चमकाने से ज्यादा ग्रहण लगाती प्रतीत होती थी। यही वजह है कि आलाकमान के तमाम प्रयासों के बावजूद दोनों नेताओं में मधुर संबंध बन ही नहीं सके। अब ऐसे वक्त में जब राज्य में विधानसभा चुनाव में (दिसम्बर, 2023) ज्यादा समय नहीं बचा है; वरिष्ठ नेताओं की आपसी खींचतान और व्यक्तिगत आक्षेप से पार्टी की स्थिति और ज्यादा पतली हो सकती है। बहरहाल, इतना तो तय है कि पायलट की नाराजगी से पार्टी को खासा नुकसान उठाना पड़ेगा।

पायलट की छवि मिलनसार और विवाद से परे की है। उनकी ईमानदारी और कर्मठता का हर कोई कायल है। लाजिमी है कि ऐसे गुणों वाला नेता अगर पार्टी में अलग-थलग पड़ जाए तो नुकसान की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। अलबत्ता, पार्टी नेतृत्व इस मनमुटाव को हल करने की बात कह रहा है, मगर यह कितना सफल और सहज होगा; यह देखना बाकी है। कुल मिलाकर राजस्थान कांग्रेस के लिए गहमागहमी का स्थायी केंद्र बन गया है और यहां नेतृत्व की अब तक की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा है।



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