यासीन को उम्रकैद
कहते हैं भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक के मामले में यह बात सच साबित हुई।
यासीन को उम्रकैद |
आतंकवादी गतिविधियों के लिए भारी-भरकम राशि जुटाने के मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अदालत ने बुधवार को मलिक को उम्रकैद यानी अंतिम सांस तक कैद की सजा सुनाई। यासीन पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। मलिक को देश (भारत) के खिलाफ युद्ध छेड़ने का भी दोषी पाया गया। फैसले में विशेष न्यायाधीश ने कहा कि यासीन मलिक के चलते ही घाटी से कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। कानून के शिकंजे में आते ही यासीन ने खुद को ‘गांधीवादी’ होने और उसी के अनुरूप आचरण की दलील दी, मगर अदालत ने उसके खूनी अतीत को आधार मानते हुए दोहरी उम्रकैद की सजा सुनाई।
दरअसल, केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ही जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों पर सख्ती होनी शुरू हो गई। एक-एक कर घाटी में सक्रिय आतंकवादी समूहों और अलगाव की पैरवी करने वालों पर शिंकजा कसना शुरू हो गया था। यासीन मलिक शुरुआती समय से ही कश्मीर को भारत से अलग करने के षड्यंत्र में शामिल रहा। पाकिस्तान स्थित आकाओं से लगातार निर्देश और रकम पाकर वह घाटी में खूनी खेल को संचालित करने में हमेशा अगुवा रहा। घाटी के युवकों को बरगलाने और पैसे देकर सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी के लिए उकसाने का उसका अपराध कमतर नहीं आंका जा सकता है।
कश्मीर के माहौल को खराब करने में उसकी भूमिका किसी से छिपी नहीं थी। कुल मिलाकर यह देशद्रोह का मामला है। घाटी में आतंक के पैरोकार रहे यासीन मलिक इकलौते नहीं हैं। कई के खिलाफ जांच चल रही है तो कई अभी सलाखों के पीछे हैं। यासीन जैसे हिंसक चरित्र वाले को सजा मिलने से पाकिस्तान का बौखलाना पड़ोसी मुल्क की साजिश को बे पर्दा करतत्त् है। वैसे तो एनआईए ने यासीन के लिए फांसी की मांग अदालत से की थी, मगर जुर्म कबूलने की वजह से उसे मौत की सजा नहीं दी गई। अलबत्ता, अब बची उम्र सलाखों के पीछे काटने से उसे हर दिन अपने किए पर पछतावा जरूर होगा। बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है। यासीन को यह बात हमेशा ताउम्र याद आएगी।
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