चीनी की चिंता
केंद्र सरकार ने गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के कुछ दिनों बाद ही चीनी के निर्यात के लिए अनुमति लेना जरूरी कर दिया।
चीनी की चिंता |
सरकारी आदेश के अनुसार 1 जून 2022 से लेकर 31 अक्टूबर 2022 तक चीनी के निर्यात के लिए अनुमति हासिल करना आवश्यक कर दिया। अभी भारत में चीनी का थोक मूल्य 3150 रु पये से 3500 रु पये प्रति क्विंटल के बीच है, जबकि खुदरा कीमतें देश के विभिन्न हिस्सों में 36-44 रु पये के दायरे में हैं।
भारत और ब्राजील दुनिया के शीर्ष चीनी निर्यातक देश हैं। भारत में महंगाई को लेकर बराबर चिंताएं बनी हुई हैं। चीनी आम उपभोग की महत्त्वपूर्ण वस्तु है। हर घर में चीनी का उपभोग होता है तो जाहिर कि इसकी कीमत को लेकर भी अगर आशंकाएं उठेंगी, तो उनका व्यापक राजनीतिक असर भी होगा। इस फैसले से सुनिश्चित होगा कि सितम्बर 2022 की समाप्ति तक चीनी का भंडार 60-65 लाख टन बना रहे जो घरेलू स्तर पर दो से तीन महीने के लिए जरूरी भंडार है।
सरकार की चिंता यह है कि अगर आम आदमी के खाने की थाली के भाव लगातार महंगे होते जाएंगे तो बहुत तरह के राजनीतिक कष्ट हो सकते हैं। गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। विपक्षी दल किसी भी आम उपभोग की सामग्री की कीमतों को मुद्दा बना सकते हैं। इसलिए सरकार फूंक-फूंककर कदम रख रही है। वैसे तो चीनी का कोई संकट फौरी तौर पर नहीं दिखायी दे रहा है, पर साल के अंत तक चीनी का पर्याप्त स्टाक बना रहे और चीनी के भाव ऊपर की तरफ ना जाएं, यह सुनिश्चित करना हर सरकार का कर्तव्य होता है। इसलिए सरकार ने चीनी के निर्यात को मुश्किल बना दिया है।
हालांकि चीनी की कीमत का असर 31 अक्टूबर 2022 के बाद भी बनी रह सकती है। इस विषय पर राजनीति संभव है, गेहूं के निर्यात को लेकर भी सरकार को वही चिंता थी कि अगर गेहूं के भाव घरेलू बाजार में बढ़ गए, तो फिर विपक्षी दलों को मुद्दा मिलेगा और जनता असंतुष्ट हो सकती है। कोरोना काल के बाद यूक्रेन युद्ध के आने के बाद दुनिया भर में हालात विकट बने हुए हैं। खाने-पीने की चीजों की मांग असाधारण तौर पर बढ़ गई है। दुनिया भर में खाने-पीने की चीजों की आपूर्ति से भारत विदेशी मुद्रा कमाएगा, पर कोई भी सरकार जनता का असंतोष नहीं कमाना चाहेगी। चीनी और गेहूं के निर्यात को लेकर किए गए फैसले को इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए।
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