संकट में मदद का हाथ
तालिबान को लेकर भारत की जो भी शंकाएं हों और उसके शासन के बारे में भारत का रुख कितना भी कड़ा हो, लेकिन अफगानिस्तान की जनता के लिए भारत की सदाशयता हमेशा बनी रही है।
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संकटों से घिरी अफगानिस्तान की जनता वास्तविक कष्ट में हो तो भारत मदद का हाथ बढ़ाए बिना रह ही नहीं सकता। दुनिया के सामने एक बार फिर मानवता की मिसाल पेश करते हुए भारत ने जीवनरक्षक दवाएं भेजकर अफगान जनता की मदद की है। हालांकि तालिबान शासन को भारत ने मान्यता नहीं दी है। दो टन दवाओं की खेप पिछले शुक्रवार को काबुल के इंदिरा गांधी हॉस्पिटल पहुंची है। अंतरराष्ट्रीय मदद बंद होने से अफगानिस्तान में भुखमरी और बीमारी के हालात हैं।
तालिबान ने दुनिया से मानवीय मदद की गुहार लगाई है। काबुल का इंदिरा गांधी हॉस्पिटल 2004 में भारत की मदद से ही बनाया गया था। तालिबान के 15 अगस्त, 2021 को अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के बाद से तीसरा मौका है, जब उसे भारत ने दवाएं और मेडिकल सामग्री भेजी हैं। दिसम्बर, 2021 में भी भारत में पांच लाख डोज कोविड वैक्सीन और 1.6 टन मेडिकल सामग्री विश्व स्वास्थ्य संगठन के जरिए अफगानिस्तान भेजी थी। तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि उनका देश बड़े मानवीय संकट का सामना कर रहा है।
लोगों के पास भोजन नहीं है, रहने के लिए जगह नहीं है, गर्म कपड़े भी नहीं हैं, और पैसा भी नहीं है। दुनिया को बिना किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह के अफगान लोगों की मदद करनी चाहिए। भारत अफगानिस्तान को 50,000 टन गेहूं देने की घोषणा भी कर चुका है। विदेश मंत्रालय पाकिस्तान सरकार के साथ इस बारे में बातचीत कर रहा है। 2014 में भारत में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही भारत-पाक संबंध ठीक नहीं हैं। पाकिस्तान भारतीय ट्रकों या मालगाड़ियों को अपनी सीमा में प्रदेश देने के खिलाफ है।
तालिबान कह चुका है कि भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा नहीं देगा। उसने कश्मीर में दखल न देने की बात भी कही है, लेकिन पाकिस्तान और तालिबान की नजदीकी के कारण भारत फूंक-फूंककर कदम रख रहा है। हालांकि तालिबान की शासन पद्धति में कोई बदलाव नहीं है। भारत का कहना है कि अफगान जनता से अपने विशेष रिश्तों के चलते मानवीय मदद करता रहेगा।
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