किस करवट बैठेगा ऊंट!
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के दामाद और विपक्षी नेता कैप्टन (अवकाश प्राप्त) मो. सफदर की गिरफ्तारी से देश में राजनीतिक भूचाल आ गया है।
किस करवट बैठेगा ऊंट! |
देश के इतिहास में संभवत: पहला अवसर है जब किसी राजनीतिक नेता की गिरफ्तारी के सवाल पर सैन्य प्रतिष्ठान और पुलिस के बीच टकराव खुलकर सामने आ गया है। गिरफ्तारी को लेकर विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों ने 18 अक्टूबर की रात को सिंध के पुलिस महानिरीक्षक मुश्ताक महार का अपहरण कर लिया और उनसे जबरन सफदर के विरुद्ध एफआईआर पर हस्ताक्षर कराए। घटना के विरोध में सिंध प्रांत के आईजी मुश्ताक सहित कई शीर्ष अधिकारी छुट्टी पर चले गए हैं।
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पुलिस का कृत्य सैन्य सत्ता प्रतिष्ठान के विरुद्ध खुला विद्रोह जैसा है। इस धारणा से प्रधानमंत्री इमरान खान की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। देश में ग्यारह प्रमुख राजनीतिक दलों के गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) ने इमरान की सरकार के विरुद्ध आंदोलन छेड़ रखा है। विपक्षी नेताओं के निशाने पर इमरान कम, सेना ज्यादा है। वास्तव में पाकिस्तान में निर्वाचित सरकारों के विरुद्ध विपक्षी दलों के अभियान का आंदोलन पहला मौका नहीं है। विगत दशकों में सड़कों पर हुए आंदोलन या सैनिक तख्ता पलट के जरिए निर्वाचित सरकारों को बेदखल किया जाता रहा है। लेकिन मौजूदा सियासी आंदोलन की प्रकृति पूर्व के आंदोलनों से भिन्न है। पाकिस्तान के इतिहास में संभवत: पहली बार है कि विपक्षी दल सार्वजनिक तौर पर शक्तिशाली रहे सभी सेनाध्यक्षों को देश की बदहाली के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
सभी जानते हैं कि पाकिस्तान की सेना असीमित शक्तियों की स्वामी है। जाहिर है कि इससे पहले किसी राजनीतिक नेता ने सेना की आलोचना करने का दुस्साहस नहीं किया था। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि सेना ने 2018 के आम चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली कराकर इमरान को प्रधानमंत्री की गद्दी पर बिठाया। जाहिर है कि सेना की सियासत में दखलंदाजी के कारण पाकिस्तान में उदारवादी लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो पा रही है। गुजरांवाला और कराची के दो बड़े जलसों के बाद सेना और राजनीति के बीच रिश्ते कैसे हों, इस पर बहस की शुरुआत हो गई है। देखना है कि ऊंट किस करवट बैठता है!
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