रुक गई कार्रवाई
केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद फिलहाल दिल्ली में रेलवे की पटरी के आसपास की झुग्गियां नहीं हटाई जाएंगी।
रुक गई कार्रवाई |
सर्वोच्च न्यायालय में सोमवार को इस मामले पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि इस मसले पर शहरी विकास मंत्रालय से चर्चा की जा रही है। जब तक झुग्गी वालों के पुनर्वास के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती, तब तक झुग्गियां नहीं हटाई जाएंगी। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रेलवे लाइन के आसपास अवैध रूप से बसी 48,000 झुग्गियां हैं।
ये झुग्गियां पिछले करीब 40 सालों से बसी हुई हैं। यह सर्वविदित है कि रेलवे की देशभर में बेशुमार जमीन और अन्य संपत्तियां हैं। इनके रखरखाव में लापरवाही बरतने और विभागीय बेरुखी के कारण ऐसी संपत्तियां अब भूमि माफिया और छुटभैय्ये बदमाशों के कब्जे में हैं। इस मामले की पिछले 31 अगस्त को सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने बेहद सख्त रुख अख्तियार किया था।
कोर्ट ने तीन महीने के भीतर दिल्ली में 140 किलोमीटर लंबी रेल पटिरयों के आसपास की लगभग 48,000 झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का आदेश दिया था। इसके अलावा, कोर्ट ने किसी भी निचली अदालत को झुग्गी-झोपड़ियों के संबंध में कोई स्टे देने से भी इनकार कर दिया था। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि रेलवे लाइन के आसपास अतिक्रमण हटाने के काम में किसी भी तरह के राजनीतिक दबाव और दखलंदाजी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा था कि रेलवे लाइन के आसपास अतिक्रमण के संबंध में यदि कोई अदालत अंतरिम आदेश जारी करती है, तो यह प्रभावी नहीं होगा। अदालत के कड़े रुख के चलते राजनीतिक दलों की नींद हराम हो गई थी। हर दल इसी उधेड़बुन में थे कि कैसे अदालत के फैसले की काट तलाशी जाए। जिस बात की आशंका अदालत ने जाहिर की थी, वैसा ही हुआ। सभी सियासी पार्टियां झुग्गी वालों के समर्थन में आ गए।
दनादन बयानबाजी होने लगी और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाने लगा, जबकि जिस बात की आशंका रेलवे ने जाहिर की थी, उस बारे में किसी भी दल ने विचार नहीं किया। रेलवे ने कहा था कि काफी अतिक्रमण तो रेलवे के सुरक्षा जोन में है जो कि बेहद चिंताजनक है। मगर इस बारे में चुप्पी दिखी। अब एक बार फिर मामला लंबा खिंचेगा। हालांकि अदालत भी यह चाहती है कि नियम के तहत अगर सभी का पुनर्वास हो तो इसी में सभी का भला है।
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