नहीं हटेंगे पीछे
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस कथन के बाद कि नागरिकता कानून किसी सूरत में वापस नहीं होगा; यह स्पष्ट हो गया है सरकार घोषित कार्यक्रम के अनुसार नागरिकता कानून पर आगे बढ़ रही है।
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यह उन सारे लोगों के लिए संदेश है जो मान रहे थे कि अगर घनघोर विरोध किया जाए तो सरकार को अपने फैसले वापिस लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है। विपक्षी दलों की मांग है कि सरकार नागरिकता संशोधन कानून वापस ले।
लेकिन सरकार अपने फैसले पर दृढ़ है, और विरोध प्रदर्शनों के बावजूद उसने गजेटियर में कानून को शामिल कर लिया। इस तरह संवैधानिक रूप से नागरिकता कानून अमल में आ गया है। जहां-जहां भाजपा की सरकारें हैं, वहां इसके तहत नागरिकता देने की प्रक्रिया भी शुरू हो रही है। इसलिए अमित शाह के कदम से किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं घोषणा की थी कि सरकार नागरिकता कानून पर पूर्व योजना के अनुसार आगे बढ़ेगी। भारतीय जनता पार्टी नागरिकता कानून के समर्थन में देशव्यापी प्रदर्शन भी कर रही है। उन कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जगह-जगह शिरकत कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा को देखें तो पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भाग कर आए हुए गैर मुस्लिमों को नागरिकता देना हिंदुत्व के अनुकूल है।
साफ है कि मोदी और शाह इस निष्कर्ष पर पहुंच गए हैं कि विरोध करने वाले भारतीय जनता पार्टी के समर्थक न थे और ना हो सकते हैं। इसलिए उनसे अप्रभावित रहते हुए अपने एजेंडे पर अडिग रहना मानवता की दृष्टि से तो उचित है ही, भाजपा के जनाधार के लिए भी यह जरूरी है। गृह मंत्री जब ऐसी प्रखर घोषणा करते हैं तो भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों के अंदर एक आलोड़न पैदा होता है और इस तरह उनका जनाधार ज्यादा सुदृढ़ होता है।
तो अमित शाह के इस ऐलान को एक साथ सरकार की दृढ़ता, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिंक रूप से उत्पीड़ित किए गए गैर मुस्लिमों के प्रति मानवीयता तथा भाजपा की अपनी राजनीतिक दृष्टि से अनुकूल कहा जा सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा हिंदुत्ववादी संगठन हैं। इनके समर्थकों का मानना है कि देश में हिंदुत्व प्रेरित राजनीति का भविष्य है। भाजपा इसी एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। कहा जा सकता है कि अमित शाह की इस घोषणा के बाद विरोधियों को अब यह तय करना होगा कि वे अब क्या करें?
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