ऐतिहासिक जलयान

Last Updated 14 Nov 2018 04:49:34 AM IST

हल्दिया से वाराणसी तक मालवाहक जहाज का चलना निस्संदेह ऐतिहासिक घटना है। देश के संकल्प एवं दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम है।


ऐतिहासिक जलयान

जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में जल यातायात को पुनर्जन्म देने की घोषणा की तो उपहास तक उड़ाया गया। जब काम आरंभ हुआ तो अनेक प्रकार की बाधाएं खड़ी की गई..पर्यावरण से लेकर अनेक कानूनी अड़चनें लाई गई। गंगा की पेटी में कई जगह पानी भी इतना नहीं था कि जहाज को निर्बाध चलाया जाए।

कई बार कई जगह परीक्षण जहाज फंस गया। आज कहा जा  सकता है कि अगर आपके अंदर निश्चय हो और उस पर आलोचनाओं और विरोधों की अनदेखी करके काम करते रहें तो सफलता अवश्य मिलेगी। भारत अंग्रेजों के आने तक जल यातायात प्राथमिकता वाला देश था। भारत की व्यापारिक-सांस्कृतिक-आर्थिक शक्ति का यह मुख्य आधार था। देश में आज भी जितनी निदयां हैं, उनका योजनापूर्वक उपयोग हो तो फिर से उसी स्थिति को पाया जा सकता है। जल यातायात सबसे कम खर्चीला और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित है।

जल यातायात जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा सड़कों से मालवाहन का वजन घटेगा। भारत की नदियों का जुड़ाव बांग्लादेश, नेपाल, चीन, पाकिस्तान जैसे देशों से है। उन देशों से फिर दूसरे देशों का जलस्रोत जुड़ा है। नदियां समुद्र से मिलती हैं। इस तरह जल यातायात को प्राथमिकता दी जाए तो कई देशों से सीधे आवागमन हो जाएगा। हल्दिया से वाराणसी मालवाहक जहाज का आना भविष्य का आधार बन सकता है। गंगा में शुरु आत से कई अनुभव आए हैं। कहीं-कहीं नदी की पेटी में खुदाई करनी पड़ी। वाराणसी से अब आगे का कम चल रहा है।

इसके बाद एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए भी जलयान का उपयोग किया जाएगा। आगामी कुंभ में वाराणसी से प्रयाग तक एक घंटे में जहाज से लोग पहुंचेंगे। वास्तव में इसका एक लाभ यही है कि अधिक दूरी का सफर काफी कम खर्च में पूरी सुरक्षा से पूरी की जा सकती है। जाहिर है, इस सफल प्रयोग का तेजी से विस्तार करने की आवश्यकता है। राज्यों की सरकारें भी केंद्र से तकनीकी और वित्तीय मदद लेकर जल यातायात की ओर अग्रसर हों इसके लिए अभियान चलाने की आवश्यकता है। कल्पना करिए, यह हो गया तो सड़कों और रेल मार्ग का वजन कितना कम होगा। तेल की खपत में कितनी कमी आएगी। देश की कामना है कि हम फिर से दुनिया में जल यातायात का सिरमौर बनें।



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