कम होगा बोझ

Last Updated 26 Feb 2018 02:40:42 AM IST

आखिरकार सरकार को भी यह इल्म हो गया कि नौनिहालों की पीठ बस्ते के बोझ से कूबड़ हो रही है. यही वजह है कि केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने 2019 यानी अगले शैक्षणिक सत्र से बच्चों के बस्ते का वजन आधा करने का फैसला लिया है.


कम होगा बोझ

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई)  से जुड़े स्कूलों में एनसीईआररटी का पाठय़क्रम (सिलेबस) घटाकर आधा कर दिया जाएगा.

हालांकि अरसे से बच्चों के कंधों पर भारी बस्ता और शिक्षा के स्तर में गिरावट के मसले पर मगजमारी हो रही थी. अनंत बार बैठकों का दौर भी चला और कई सुझाव भी कागजों की शोभा बनते रहे मगर स्थिति जस-की-तस बनी रही.

यहां तक कि 1992 में प्रो. यशपाल की अगुवाई में बनी कमिटी के सुझाव भी सरकारी आलमारियों की धूल फांकते रहे. अब अगर सरकार ने इस पर संजीदगी से सोचा है तो इसकी सराहना तो होनी ही चाहिए. दरअसल, कई बार बहस इस बात को लेकर होती रही है कि बच्चों का बैग उनके वजन के हिसाब से कई गुना ज्यादा है. और इससे उनमें मानसिक और शारीरिक तौर पर विकास बाधित होता है.

मगर प्रो. यशपाल कमिटी ने देश-दुनिया के सामने इस बात पर भी चिंता जताई कि असली समस्या बस्ते का बोझ तो है, किंतु उससे ज्यादा चिंता का सबब बच्चों में पढ़ाई को न समझ पाने का बोझ है.

इसे दूर करना ज्यादा चुनौती भरा है. विडम्बना है कि सरकारों को ऐसे सुझाव को समझने और अमल करने में सालों लग गए. 1990 में राज्य सभा में आर.के. नारायण ने बच्चों के बस्ते को कम करने के वास्ते आवाज बुलंद की थी. तब से 2018 तक यह अनसुलझा ही रहा है. खैर, देर आयद दुरुस्त आयद. पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों का सर्वागीण विकास बेहद महत्त्वपूर्ण है.

आज के दौर में ढेरों किताबों के बल पर बच्चों को ज्ञानवान बनाकर स्कूल भले अपनी कॉलर ऊंची करें, परंतु कल्पना और समझ के संसार में बच्चे कंगाल ही होते जा रहे हैं. देखना है, अगले महीने आने वाली रिपोर्ट में शिक्षा सुधार को लेकर ‘दृष्टि’ कितनी पैनी और गुणवत्तापूर्ण होगी? हां, इस निर्णय में राज्य सरकार की भागीदारी किस रूप में होगी, इसे भी रेखांकित करने की जरूरत है. शिक्षा से भविष्य को गढ़ने में मदद मिलती है. लिहाजा सभी को खुले दिलो-दिमाग से आगे आना होगा.



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