देशद्रोही रवैया
द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के आधार पर भारत से अलग होकर पाकिस्तान का निर्माण और जम्मू-कश्मीर सूबे का भारत में विलय, ये दोनों राजनीतिक घटनाएं अब तक नई दिल्ली के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं.
देशद्रोही रवैया |
कश्मीर में जिस तरह से पाकिस्तान अलगाववादी शक्तियों को बढ़ावा देता आ रहा है, उसे देखते हुए कश्मीर की समस्या को पाकिस्तान से अलग करके नहीं देखा जा सकता. जम्मू-कश्मीर भारत के लिए विशेष महत्त्व रखता है और इसीलिए कश्मीर में होने वाली किसी भी घटना से पूरा देश प्रभावित होता है.
लेकिन पिछले दिनों नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ विधायक अकबर लोन ने जिस ढीठ अंदाज में विधान सभा के भीतर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए, उसके खिलाफ पूरे देश में जिस तरह की तीव्र प्रतिक्रिया होनी चाहिए थी, वैसी हुई नहीं. यह चौंकाने वाली घटना है.
शायद यह पहली ऐसी घटना है, जब किसी विधायक ने सदन के भीतर पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. वहां भाजपा और पीडीपी की मिलीजुली सरकार है. कवींद्र गुप्ता विधान सभा के अध्यक्ष हैं और उन्होंने पाकिस्तान के समर्थन में नारा लगाने वाले विधायक अकबर लोन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. केंद्रीय गृह मंत्री ने इस घटना का कोई संज्ञान लिया हो, इसकी भी कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी है.
हालांकि नेशनल कांफ्रेंस के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री उमर फारूख ने इस घटना से अपनी पार्टी को अलग कर लिया है. ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि क्या सिर्फ इतना कह देने भर से उनकी जिम्मेदारी पूरी हो जाती है? वाकई यह मसला सीधे तौर पर देशद्रोह से जुड़ा मसला है. इस विधायक के खिलाफ तुरंत कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए.
दरअसल, जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के तुरंत बाद से ही इस सूबे की शल्य चिकित्सा निरंतर जारी है, लेकिन अब तक इसके कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आए हैं. कश्मीर जब भी शांत होने लगता है, पाकिस्तान उसे अशांत बना देता है. पिछले दिनों आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर में नये सिरे से हिंसा भड़क उठी थी.
इसमें पाकिस्तान का पूरा-पूरा हाथ था. पाकिस्तान की शह पर कश्मीर के अलगाववादियों ने जो उत्पात मचाया और जिस तरह से सुरक्षाबलों को पत्थरबाजों से निपटना पड़ा, वह जग जाहिर है. पाकिस्तान की दिक्कत है कि कश्मीर राग छेड़े बगैर वह उन समस्याओं को टाल नहीं सकता जो सीधे- सीधे जवाब मांगते हैं.
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