केवल भूमि विवाद
अयोध्या विवाद की सुनवाई में उच्चतम न्यायालय का यह कहना कि वह इसे सिर्फ भूमि विवाद के रूप में देख रही है, कतई अस्वाभाविक नहीं है.
केवल भूमि विवाद |
न्यायालय भावनाओं के आधार पर न सुनवाई कर सकता है न कोई फैसला दे सकता है. उसकी भूमिका ठोस तथ्यों और साक्ष्यों के अनुसार फैसला करने की है.
अयोध्या विवाद यद्यपि देश के करोड़ों लोगों के लिए भावनाओं का मुद्दा है लेकिन जब यह न्यायालय में आ गया तो उसका चरित्र सीमित हो गया. न्यायालय के सामने तो मुद्दा यही है कि विवादित स्थल पर किसका स्वामित्व बनता है. यही उसे तय करना है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी इसी आधार पर विवाद का फैसला किया था. हालांकि इसका यह अर्थ कदापि नहीं माना जाना चाहिए कि दीवानी मामला हो जाने के कारण जो पुरातात्विक या प्राचीन ग्रंथों के प्रमाण हैं, उनका संज्ञान न्यायालय नहीं लेगा.
न्यायालय ने स्वयं उच्च न्यायालय को सभी पक्षों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा की गई खुदाई के वीडियो उपलब्ध कराने का आदेश दिया है. एएसआई की ओर से 1970, 1992 एवं 2003 में खुदाई की गई थी. देश चाहता है कि उच्चतम न्यायालय मामले की तेजी से सुनवाई करके फैसला दे. किंतु इससे संबंधित दस्तावेज इतने अधिक हैं कि उनके अनुवाद में ही समय लग रहा है. कुल 524 दस्तावेजों में से 504 के अनुवाद न्यायालय में दाखिल हो चुके हैं. 87 गवाहियों के अनुवाद और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रिपोर्ट भी दाखिल हो चुका है.
उम्मीद करनी चाहिए कि शेष दस्तावेजों और पुस्तकों का अनुवाद जल्द न्यायालय में आ जाएगा. उसके बाद न्यायालय नियमित सुनवाई कर सकेगा. वैसे तो इस विवाद का समाधान न्यायालय के बाहर दोनों पक्षों की रजामंदी से हो जाता तो बेहतर होता. किंतु इस संबंध के अब तक जितने भी प्रयास हुए, वे सफल नहीं रहे. राजनीतिक दलों की मुख्य चिंता विवाद के समाधान की बजाय अपने वोट बैंक को बढ़ाने और सुरक्षित रखने की रही है.
खैर, अब सभी पक्षों को यह मानकर चलना होगा कि उच्चतम न्यायालय जो भी फैसला देगा, उसे स्वीकार कर विवाद का स्थायी अंत कर दिया जाएगा. राजनीतिक दलों को भी अभी से मन बनाना होगा ताकि उच्चतम न्यायालय का जो भी फैसला आए उसे अमल में लाने के लिए काम कर सकें. यही एकमात्र रास्ता है और इसी में देश की भलाई भी है.
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