चुनाव की उद्घोषणा

Last Updated 19 Jan 2018 04:52:45 AM IST

चुनाव आयोग द्वारा पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के विधान सभा चुनावों की तिथियों की घोषणा के साथ ही देश एक बार फिर से चुनावी मूड में आ गया है.


चुनाव की उद्घोषणा

वैसे तो ये सारे राज्य एकदम छोटे हैं, फिर भी इस समय इनका राजनीतिक दृष्टि से व्यापक महत्त्व है. केरल के बाद माकपा के नेतृत्व में त्रिपुरा में दूसरी सरकार है.

पिछले पांच बार से वहां माकपा नेतृत्व वाले वामदल ही चुनाव जीतते आ रहे हैं. कांग्रेस की जिन पांच राज्यों में सत्ता बची हुई है मेघालय उनमें से एक है. नगालैंड में नागा पीपुल्स फ्रंट-नेतृत्व वाले डेमोक्रेटिक अलायंस की सरकार है. भाजपा ने इसे समर्थन दिया हुआ है.

इस तरह यहां राजग की सरकार मानी जाएगी. तो तीनों राज्यों में तीन धाराओं की सरकार है. भाजपा पहली बार तीनों राज्यों को राजग का भाग बनाने के लिए चुनाव लड़ रही है. उसका सबसे ज्यादा जोर त्रिपुरा में है. त्रिपुरा में हमेशा से मुख्य मुकाबला वामदल और कांग्रेस के बीच रहा है. भाजपा को कांग्रेस में व्याप्त असंतोष और माकपा नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ जनरु झान से उम्मीद है.

2016 में कांग्रेस के जिन 6 विधायकों ने ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का हाथ पकड़ा था, उन्होंने अब भाजपा का दामन थामा है. दूसरी पार्टयिों से भी नेता भाजपा में आ रहे हैं. तो देखना होगा कि भाजपा त्रिपुरा में वाम का गढ़ तोड़ पाती है या नहीं. मेघालय में भी कई पार्टयिों के नेताओं ने भाजपा का दामन थामा है. इससे भी उसको उम्मीद है.

नगालैंड में तो खैर उसके समर्थन की सरकार है ही. अगर भाजपा त्रिपुरा में वामदलों का गढ़ तोड़ देती है तो फिर कर्नाटक और उसके बाद के तीन राज्यों के विधान सभा चुनावों में आत्मविश्वास से उतरेगी. अगर वामदल गढ़ बचाने में कामयाब रहे तो वे मोदी सरकार के खिलाफ गोलबंदी के लिए ज्यादा सक्रिय होंगे. कांग्रेस के सामने मुख्य चुनौती तो किसी तरह मेघालय की सरकार बचाने की है.

हालांकि वह सरकार बचा लेती है तो कोई ज्यादा अंतर नहीं आएगा किंतु यदि भाजपा वहां अच्छा प्रदर्शन करती है तो फिर कांग्रेस के अंदर निराशा का भाव पैदा होगा और इसका राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा. जो भी हो, कोई पार्टी जीते या कोई हारे, देश यही चाहेगा कि चुनाव संसदीय लोकतंत्र के संस्कारों के अनुरूप मर्यादाओं से बंधे हुए हों, नेताओं के बयान सीमाओं से बाहर न जाएं और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से परे राजनीतिक कटुता की स्थिति पैदा न हो.



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