कंपनियों पर वार
सरकार द्वारा 1 लाख 20 हजार कंपनियों का नाम आधिकारिक रिकॉर्ड से हटाना यानी उनका पंजीकरण रद्द करना कालाधन के खिलाफ कार्रवाई की दिशा का बहुत बड़ा कदम है.
कंपनियों पर वार |
चूंकि इसके पहले सरकार 2 लाख 26 हजार कंपनियों का पंजीकरण रद्द कर चुकी है, इसलिए यह संख्या आश्चर्य में नहीं डालती, अन्यथा यह बहुत बड़ा कदम है. इसके साथ कुल मिलाकर 3 लाख 46 हजार कंपनियों का पंजीकरण रद्द हो जाएगा. कालेधन के खिलाफ लड़ाई के तहत सरकार विभिन्न नियमों का पालन नहीं करने वाली कंपनियों का पंजीकरण रद्द कर रही है. पता नहीं आगे कितनी कंपनियों का नाम रद्द होने वाली सूची में आएगा.
केंद्र सरकार पर कालाधन के खिलाफ बड़े कदम न उठाने का आरोप लगाने वालों को यह जवाब है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई भाषणों में जिक्र किया है कि नोटबंदी के कारण अनेक कंपनियां पकड़ में आई, जिनकी भारी संख्या में खाते थे, कई तो केवल शेल कंपनियां थीं जो कालधन के सफेद बनाने के लिए इस्तेमाल की जातीं थीं. कई ऐसी थीं जो कोई काम कर ही नहीं रहीं थीं लेकिन खातों में धन आ रहा था. अभी यह पता करना मुश्किल है कि इन कंपनियों ने कितनों के वारे-न्यारे किए. शायद पूरी छानबीन के बाद भी पूरा घोटाला राशि सामने न आ पाए.
अब शेल कंपनियां बनाकर धनों का वारा-न्यारा करने वाले लोगों के लिए सरकार की कार्रवाई भय निरोधक की भूमिका अदा कर सकती है. बताया गया है कि इन कंपनियों से जुड़े 3.09 लाख निदेशकों को अयोग्य भी घोषित किया जा चुका है. हालांकि पंजीकरण रद्द हो जाने वाली कई कंपनियों ने पंजीकरण बहाली के आवेदन भी किए हैं. इनका मानना है कि इन्होंने कुछ गलत नहीं किया है. इनका मामला राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के पास भेज दिया गया है. किंतु ऐसी कंपनियों की संख्या अभी 1200 से कम ही होगी. तो रद्द होने वाले की संख्या में इनका अनुपात लगभग नगण्य है. इसका अर्थ हुआ कि ज्यादातर कंपनियां धोखाधड़ी में शामिल थीं.
सरकार इस बात की भी समय-समय पर समीक्षा कर रही है कि जिनका पंजीयन रद्द किया गया उनके खिलाफ कार्रवाई क्या हुई? वास्तव में केवल पंजीयन रद्द करना और रिकॉर्ड से उनका नाम हटाना ही पर्याप्त नहीं है. इसकी तो आयोग बनाकर जांच होनी चाहिए. संबंधित सरकारी विभागों की मिलीभगत के बगैर यह ऐसा भ्रष्टाचार संभव ही नहीं है. इसलिए केवल निदेशकों तक कार्रवाई सीमित रखना उचित नहीं होगा.
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