दिवाला कानून में तब्दीली
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ऐसे अध्यादेश को मंजूरी दी है, जिसके तहत उन चोर किस्म के प्रवर्तकों को कुछ चोट पहुंचेगी, जो अपनी ही बीमार की गई कंपनियों को सस्ते भावों पर खरीदने की योजना बना रहे थे.
दिवाला कानून में तब्दीली |
पूरा संदर्भ यह है कि सरकार ने दीवाला प्रक्रिया के तहत एक कानून बनाया था, जिसमें यह उपाय था कि तमाम बीमार कंपनियों को बैंक, वित्तीय संस्थान नीलाम करें, इस नीलामी से संसाधन जुटाकर तमाम तरह के कजरे की वापसी का इंतजाम करें. पर नीलामी के मसले आसान नहीं हैं.
जाहिर है कि इस तरह की नीलामियों में बहुत आसानी से वांछित भाव, अधिकतम भाव नहीं मिलते. अधिकांश मामलों में संपत्तियों को औने-पौने दामों में बेचना पड़ता है. कई चालू किस्म के प्रवर्तकों ने ऐसी योजना बनाना शुरू कर दिया था कि जो कंपनियां वे बीमार बना चुके हैं, उन्हीं कंपनियों को नीलामी प्रक्रिया में औने-पौने दामों में खरीद लिया जाए.
अगर ऐसा संभव हो जाए, तो यह दीवाला प्रक्रिया का मजाक ही होता. पर अध्यादेश के तहत ऐसी व्यवस्था रखी जाने के संकेत हैं कि जानबूझ कर कर्ज ना चुकाने वाले, दीवाला प्रक्रिया में संलग्न, अयोग्य घोषित निदेशक, और तमाम किस्म की गड़बड़ियां करनेवाले व्यक्ति दीवाला प्रक्रिया में बतौर आवेदक शामिल नहीं होंगे. यानी तमाम तरह के गड़बड़ीकर्ता गड़बड़ीवाले फर्मो को खरीदने के लिए अयोग्य घोषित होंगे. तकनीकी तौर पर यह बहुत ही स्वागतयोग्य कदम है कि गड़बड़ और अयोग्य व्यक्तियों को दीवाला प्रक्रिया से दूर रखा जाए.
देखने में यह आता है कि भारत में कंपनियां डूब जाती हैं, पर उनके प्रवर्तक एकदम मजे में रहते हैं. जबकि कंपनियों के निवेशक, उधारदाता सब समस्याओं में आ जाते हैं. कंपनियों के ग्राहकों की हालत खराब हो जाती है. पर प्रवर्तकों की मौज-मस्ती में कहीं कोई कमी नहीं आती है, वो फिर दूसरी कंपनियां ढूंढ़ लेते हैं चौपट करने के लिए. यह अध्यादेश यह सुनिश्चित करे कि जो प्रवर्तक कंपनियों की दुर्दशा के जिम्मेदार हैं, वे दंडित हों यानी कि उन्हें ही सस्ते भाव में वह कंपनियां दे दी जाए. यह अध्यादेश तो सिर्फ एक कदम भर है.
जरूरत है ऐसे कदमों को उठाने की कि अगर कंपनियां डूबती हैं, तो उनके प्रवर्तकों की मौज में भी कमी आए. उन पर अगली बार कारोबार करने पर नियंत्रण रहे. वित्तीय संसाधन जुटाने की उनकी कोशिशें प्रतिबंधित हों. इसलिए इस तरह का अध्यादेश एक कदम हो सकता है, पर आखिरी कदम नहीं.
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