फिर अयोध्या
श्री श्री रविशंकर की पहल के कारण अयोध्या विवाद के समाधान का प्रयास फिर से सुर्खियों में है.
फिर अयोध्या |
सांप्रदायिक तनाव का कारण बना यह विवाद यदि बातचीत से समाधान तक पहुंचे तो इससे अच्छी बात देश की एकता के लिए कुछ नहीं हो सकती. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह कहकर रविशंकर के प्रयास को थोड़ा बल दे दिया है कि सरकार संवाद की हर पहल का स्वागत करती है. किंतु क्या बातचीत से हल संभव है?
बातचीत से समस्या के हल के जितने प्रयास हुए वे अभी तक सफल नहीं हुए हैं. इस समय भी अभी तक हमारे सामने जितनी खबरें हैं, उनसे कोई उम्मीद बांधने वाला निष्कर्ष निकालना जरा कठिन है. जो हिन्दू पक्ष हैं वो तो विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण के पक्षधर हैं और उन्होंने यही बातें श्री श्री के सामने रखी हैं. किंतु उनमें भी ऐसा नया कुछ नहीं है जो पहले नहीं आए हैं.
मसलन, राम जन्म भूमि न्यास ने कहा है कि वह विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण और अन्य जगह मस्जिद के निर्माण के पक्ष में है. हिन्दू महासभा ने भी यही कहा है. इस प्रस्ताव को कानूनी लड़ाई लड़ने वाले मुस्लिम पक्षों ने पहले भी नकारा है तो अब कैसे स्वीकार कर लेंगे. हां, शिया वक्फ बोर्ड अवश्य मंदिर निर्माण के पक्ष में मुखर हुआ है. किंतु वह न्यायालय में पार्टी नहीं है.
सुन्नी वक्फ बोर्ड टस से मस होने को तैयार नहीं है. यही हालत बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का है. हिन्दू पक्षों में कई प्रमुख साधुओं, जिनमें से राम विलास वेदांती ने रविशंकर की पहल से ही असहमति जता दिया है. इसलिए बातचीत की सफलता को लेकर संदेह पैदा होता है. किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि बातचीत निर्थक ही हो रही है. बातचीत करने में कोई हर्ज नहीं है.
कम से कम इससे संवाद की फिर से शुरु आत हुई. जितने लोग संवाद करेंगे कम से कम उनके बीच एक समन्वय तो हो सकता है. वैसे श्री श्री ने कोई प्रस्ताव अपनी ओर से नहीं रखा है. यह अच्छी बात है. जो लोग यह कह रहे हैं कि वे प्रस्ताव लेकर आएं वे वास्तव में इसे उलझाए रखना चाहते हैं. कोई प्रस्ताव रख देने के बाद तो केवल हां और ना का उत्तर ही शेष रह जाता है.
इसलिए सबकी बात सुनना और उसके बीच से रास्ता निकालना ही बातचीत की सही रणनीति हो सकती है. यही रविशंकर कर रहे हैं. अगर बातचीत से मामला नहीं सुलझा तो उच्चतम न्यायालय सामने है ही. वहां अगले महीने सुनवाई आरंभ हो रही है.
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