बारूदी हुई आबोहवा
सर्वोच्च न्यायालय ने जब दीपावली को ध्यान रखते हुए 1 नवम्बर तक दिल्ली राजधानी क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई थी, तो उम्मीद बंधी थी कि इस बार हमें पटाखों से होने वाले वायु और ध्वनि प्रदूषण का मुकाबला नहीं करना पड़ेगा.
बारूदी हुई आबोहवा |
यह कहना तो सही नहीं होगा कि प्रतिबंध का असर हुआ ही नहीं लेकिन जितना होना चाहिए था नहीं हुआ.
यह बिल्कुल सच है. चोरी-छिपे पटाखे बिके. जैसे-जैसे रात चढ़ी पटाखे फूटने लगे. न्यायालय के प्रतिबंध की खुलेआम धज्जियां उड़ती रहीं. दुष्परिणाम भी स्वाभाविक ही सामने आया है. दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एअर क्वालिटी इंडेक्स यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक दीपावली के अगले दिन 400 से ऊपर रिकॉर्ड किया गया.
400 से ऊपर होने का मतलब है गंभीर स्थिति. बेशक, स्थिति पिछले साल से बेहतर है. पिछले साल दिवाली के दिन (30 अक्टूबर) वायु गुणवत्ता सूचकांक का स्तर 431 और अगले दिन 445 था. इस बार यह दिवाली के दिन 319 दर्ज किया गया. दिल्ली से परे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में यह 400 से 420 रहा.
अलग-अलग क्षेत्रों से अलग-अलग रिपोर्टे हैं. दिल्ली के पंजाबी बाग और आनंद विहार में दीपावली की अगली सुबह वायु गुणवत्ता सूचकांक 999 रिकॉर्ड किया गया. आरकेपुरम में यह 978 रहा. दिल्ली का एक क्षेत्र दिलशाद गार्डन है जहां यह 221 था. साफ है कि जहां के लोगों ने न्यायालय के निर्णयों को अस्वीकार कर कालाबाजार से पटाखे खरीदे और फोड़े. वायु को खराब किया तथा अपने लिए मुसीबत मोल ली. जिस क्षेत्र के ज्यादातर लोगों ने इसे स्वीकार किया, उन्होंने प्रदूषण को नीचे स्तर पर रखने में कामयाबी पाई.
सर्वोच्च न्यायालय ने पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध जारी रखते हुए यह तर्क दिया था कि एक बार इसका असर देख लिया जाए. साफ है कि पटाखों का असर प्रदूषण पर पड़ता है. अगर दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखे न फूटते तो आज स्थिति थोड़ी अलग होती. पटाखे फोड़ने वालों से यह प्रश्न तो किया ही जा सकता है कि आखिर, क्षणिक आनंद में अपनी ही आबोहवा को जहरीला बनाने के लिए हमने क्यों ऐसा किया?
पटाखों की दीपावली की धार्मिंकता से क्या लेना-देना है? इस मामले में दिल्ली पुलिस प्रशासन पूरी तरह कठघरे में खड़ा है. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन कराना उसकी जिम्मेवारी थी. इस मामले में वह पूरी तरह विफल रहा तो क्यों?
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