महिला आरक्षण का दांव
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने में मदद के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस विषय को फिर से सतह पर ला दिया है.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (फाइल फोटो) |
हालांकि भाजपा इस पर अभी तक खामोश है, इसलिए कहना मुश्किल है कि आखिर वह चाहती क्या है? वैसे प्रधानमंत्री मोदी अपने पक्ष में महिलाओं को करने के लिए ‘उज्जवला’ जैसी योजनाओं का पूरा प्रचार कर रहे हैं. तीन तलाक पर स्पष्ट और मुखर रुख अपनाकर मोदी ने मुस्लिम महिलाओं के एक वर्ग का दिल जीतने की कोशिश की. भाजपा ने पार्टी के अंदर महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित कर दिया है.
संभव है भाजपा महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में लाने पर विचार कर रही हो. हो सकता है सोनिया गांधी के सलाहकारों ने रणनीति के तहत यह पत्र लिखवाया हो ताकि कुछ श्रेय कांग्रेस के भी मिल जाए. ध्यान रखिए, संप्रग के शासनकाल में 2010 में राज्य सभा में यह विधेयक पारित हो चुका है. किंतु अपने सहयोगी और साथी दलों के विरोध के कारण सरकार ने लोक सभा में उसे रखा ही नहीं.
इस समय लोक सभा में राजग को बहुमत है और कांग्रेस यदि उसमें सहयोग कर देती है तो इसे पारित होने से कोई रोक नहीं सकता. वस्तुत: महिला आरक्षण का मुद्दा दो दशकों से ज्यादा समय से अटका पड़ा है. हालांकि इस समय कुछ राज्यों ने स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया हुआ है और इसका असर भी हुआ है. किंतु संसद और विधान सभाओं में उनको एक तिहाई आरक्षण देने को लेकर हर दल के अंदर विरोध है.
कई नेताओं को लगता है कि इससे राजनीति पर से उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी. कुछ को भय है कि उनकी सीटें छीन जाएंगी. हालांकि विधेयक के अनुसार महिलाओं की आरक्षित सीटें हर चुनाव में बदलतीं रहेंगी, कितु इससे कई पुरुषों के सियासी भविष्य पर तो असर पड़ेगा ही.
लालू यादव एवं मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं ने इसे दलित और पिछड़ी जाति की महिलाओं के लिए आघात तक बता दिया, क्योंकि इनके अनुसार विधेयक में इनके लिए अलग से आरक्षण का प्रावधान नहीं है. इससे भी नेता प्रभावित हुए हैं.
वैसे आरक्षित सीटों पर उसी वर्ग की महिलाएं खड़ी हो सकतीं हैं, पर इसे एक बड़ा मुद्दा बना दिया गया है. हमारा मानना है कि महिलाओं को विधायिकाओं में उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए, भले उसका तरीका जो हो.
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