चेत जाएं स्कूल
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुग्राम के प्रद्युम्न हत्याकांड प्रकरण में जिस सख्त लहजे का इस्तेमाल किया है, वह सभी स्कूलों खासकर निजी स्कूलों के लिए चेत जाने का संकेत है.
चेत जाएं स्कूल |
शीर्ष अदालत को निजी स्कूलों की मनमानी और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ का भली-भांति इल्म है, तभी उसने बच्चों की सुरक्षा को एक स्कूल से न जोड़ते हुए पूरे देश का मामला बताया.
यह टिप्पणी इस लिहाज से भी गंभीर हो जाती है कि आए दिन स्कूल परिसर में जिस तरह से बच्चों की जान जा रही है, उसके बारे में संजीदगी के साथ सोचने का वक्त आ गया है. खासकर स्कूल मैनेजमेंट और शिक्षा से जुड़ीं सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं को सुरक्षा को लेकर अब लचर सोच को तिलांजलि देनी होगी.
हालांकि ऐसा नहीं है कि निजी स्कूलों की घोर मनमानी, लूट-खसोट की आदत, सुरक्षा मापदंडों का खुला उल्लंघन, फीस और अन्य एक्टिविटी के नाम पर भारी वसूली और व्यवहार में रुखापन और अशिष्टता की बात अब उजागर हुई है. इनके कारनामों की लंबी फेहरिस्त है, जो हर किसी को मालूम है.
लेकिन अगर किसी मासूम की हत्या पर भी स्कूल अपनी लापरवाही पर पर्दा डालने की साजिश रचे तो यह बर्दाश्त के बाहर की बात है. शायद स्कूल के इसी सतही और ‘सब कुछ चलता है’ के एप्रोच को शीर्ष अदालत ने अपनी सुनवाई के दौरान कहा भी. स्कूल अपनी हद में रहें और बच्चों की सुरक्षा समेत तमाम आशंकाओं को दूर करने के प्रति गंभीर बनें, यही देश के हर मां-बाप की ख्वाहिश है.
पेट काटकर मोटी फीस देने के पीछे बच्चे के कॅरियर को परवान चढ़ाने की इच्छा ही सवरेपरि होती है. लेकिन स्कूल मैनेजमेंट की सोच इन सब बातों से अलहदा होती है. इस चलन को दूर करना ही होगा. सुप्रीम कोर्ट भी निजी स्कूलों से यही उम्मीद रखती है. देखना है, स्कूलों की कमियों पर जिम्मेदारी तय करने की बात करने वाले सुप्रीम कोर्ट की बात का कितना असर स्कूल प्रबंधन पर होता है!
अभी तो सिर्फ एक जांच एजेंसी की रिपोर्ट आई है, जिसमें रेयान स्कूल की कई सारी गलतियां बाहर आई हैं. चमक-दमक और ब्रांड के नाम पर मां-बाप को भरमाने के खेल से स्कूलों को बाहर आने के लिए सरकार और अदालत की कोशिश की सराहना करनी होगी, लेकिन सब कुछ नीयत पर निर्भर करता है. फिर भी, प्रद्युम्न हत्याकांड में सरकार ऐसा कुछ तो जरूर करे, जो आगे चलकर एक नजीर बने.
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