न्याय चक्र
पच्चीस साल बाद आखिर न्याय चक्र फिर उसी मुकाम पर पहुंच गया. अयोध्या में 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने के बाद इन ढाई दशकों में सरयू में काफी पानी बह गया है.
न्याय चक्र |
इस बीच, भारतीय जनता पार्टी पहले सबसे प्रमुख विपक्षी दल और फिर सत्ताधारी दल बन गया. संघ परिवार की हाशिए की विचारधारा मुख्यधारा की एक ताकतवर प्रतिनिधि बन गई. मौजूदा दौर में तो देश के बड़े हिस्से में उसकी तूती बोलने लगी है.
आधी से अधिक आबादी पर उसकी सरकारों का राज है. लेकिन यह भी सही है कि राम जन्मभूमि आंदोलन और बाबरी मस्जिद ढहा कर भाजपा को देश के बड़े हिस्से में स्वीकार्य बनाने वाले उसके सभी नेता बूढ़े ही नहीं हो चले हैं, बल्कि मौजूदा नेतृत्व ने उन्हें किनारे भी कर दिया है. उन्हें मार्गदर्शक मंडल में डालकर एक तरह से रिटायर कर दिया गया है.
लेकिन न्याय के तकाजे तो फिर भी बने ही रहे हैं. सवाल यह नहीं है कि राम जन्मभूमि आस्था का मामला है या उसके लिए आंदोलन नहीं चलाया जा सकता था. सवाल यह है कि जैसे बाबरी मस्जिद तोड़ी गई, उसे किस नजर से देखा जाए. राम जन्मभूमि के लिए आंदोलन चलाने वाले अब सबसे बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी और भाजपा की ओर से अयोध्या में कार सेवा करने के लिए केंद्र सरकार को ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट को वचन दिया गया था कि बाबरी मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होने दिया जाएगा.
उत्तर प्रदेश में तब कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी. ऐसे में संवैधानिक मर्यादा और अधिक अकाट बन रही थी. फिर भी सबकी आंखों के सामने मस्जिद को ढहाया गया. यह तो अभी अलग है कि उसके बाद हुए देश भर में दंगों में सैकड़ों लोगों की जान गई. बेशक, सबको अपनी तरह से राजनीति करने का हक है. मगर मर्यादाओं को तोड़ने का सिलसिला चल पड़ा तो इसका तो कोई अंत नहीं है.
नैतिकता का तकाजा तो यह भी है कि फिलहाल केंद्र में मंत्री उमा भारती और राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह को इस्तीफा दे देना चाहिए. आखिर आडवाणी ने नब्बे के दशक में जैन हवाला डायरी में नाम उछलने पर संसद की सदस्यता से इस्तीफा देकर एक मर्यादा बनाई थी. इस मामले में तो सर्वोच्च अदालत ने साजिश के मामले को फिर से बहाल कर दिया है. जो भी हो, न्याय का तकाजा सबसे ऊपर रहना चाहिए.
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