मणिपुर में बहुमत
मणिपुर को ‘आभूषणों की भूमि’ कहा जाता है. लेकिन पिछले पांच-छह सालों में मणिपुर आर्थिक नाकेबंदी का पर्याय भी बन चुका है.
मणिपुर में बहुमत |
शुक्र है भाजपा की सरकार के सत्तारूढ़ होते ही सूबे की सबसे बड़ी और जटिल समस्या नाकेबंदी खत्म हो चुकी है.
सुखद यह भी कि मुख्यमंत्री बिरेन सिंह के नेतृत्व में राज्य की भाजपा सरकार ने छोटे दलों की मदद से बहुमत भी हासिल कर लिया. इस तरह से बिरेन सिंह सरकार 31 के बहुमत के आंकड़े को 32 की संख्या पाकर पहली बाधा तो पार कर ही ली. हालांकि, सरकार चलाना भाजपा के लिए बहुत आसान नहीं है, मगर बिरेन की सालों की पत्रकारिता और सियासी समझ का मणिकांचन योग, राज्य को मुश्किल दौर से बाहर निकालने में जरूर मददगार होगा.
दरअसल, मणिपुर की समस्या एक नहीं बल्कि कई हैं. राज्य 15 साल के कांग्रेस निजाम में आर्थिक मोचरे पर तो तबाह हुआ ही, साथ ही नगा-मैतैयी समुदाय के बीच वैमनस्य, आर्थिक नाकेबंदी, सात नये जिलों के गठन की सिफारिश और अफ्सपा खत्म करने की मांग ने भी सूबे को काफी पीछे ढकेल दिया है. और इन समस्याओं के समाधान इतने आसान भी नहीं हैं.
खासकर, पर्वतीय इलाकों और घाटी के बीच राजनीतिक खाई काफी चौड़ी है. इसे पाटना नवनियुक्त मुख्यमंत्री के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा. इसके अलावा एक चुनौती बाहरी लोगों की आबादी का बढ़ना है. इसके वास्ते ‘इनर लाइन परमिट’ को लागू करने की मांग भी जोरदार तरीके से उठती रही है. लेकिन केंद्र फिलहाल इसे लागू करने के पक्ष में नहीं है.
इस मसले का निपटारा कैसे होगा, यह देखना होगा. साथ ही भाजपा की ‘लुक ईस्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ की पॉलिसी की भी परख होगी. पूर्वोत्तर में असम और अरुणाचल प्रदेश में सरकार बनाने के बाद पार्टी की निगाह मणिपुर पर ही थी, और इसे फतह करने के बाद यहां सुशासन कायम करना भाजपा की बेहतर कार्यशैली के दावे को भी पुख्ता करेगा.
बिरेन के तौर पर भाजपा को तपा-तपाया लीडर मिला है. राज्य के हरेक मुद्दों की समझ रखने वाले इस नेता के साथ मणिपुर की 30 लाख की आबादी का भी बहुत कुछ दांव पर है. देखना है बिरेन जनता की उम्मीदों को कितना तराशते हैं.
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