मर्यादा बनी रहे

Last Updated 21 Feb 2017 05:53:57 AM IST

सामान्य हिंदुओं और भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों की यह आम धारणा है कि समाजवादी पार्टी की सरकार जब सत्ता में रहती है, तो एकपक्षीय फैसले करती है.


मर्यादा बनी रहे

अर्थात मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति को बढ़ावा देती है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फतेहपुर के अपने चुनावी भाषण में इसी धारणा को अपनी पार्टी के पक्ष में भुनाने का प्रयास किया है.

हालांकि, इस तरह के भेदभाव के आंकड़े न तो सरकार के पास उपलब्ध हैं, और न भाजपा ने ही कोई प्रमाणिक आंकड़े इकट्ठे किए हैं. मसला चाहे लव जेहाद का रहा है, या कैराना से हिंदुओं के पलायन का, जिनको लेकर राजनीतिक गलियारे में काफी हलचल मची थी.

इन दोनों ही मसलों पर भाजपा के छोटे-बड़े सभी नेताओं ने काफी विवाद खड़ा किया था, लेकिन इसके समर्थन में कोई प्रमाणिक आंकड़ा पेश करने में सफल नहीं रहे. हद तो तब हो गई जब कैराना से हिन्दुओं के पलायन का मुद्दा उठाने वाले भाजपा नेता हुकुम सिंह चुनाव के ऐन वक्त अपने बयान से पलट गए. सो, यह कितना सच और कितना गलत है, यह कहना कठिन है.

इसीलिए विपक्षी दलों के नेता प्रधानमंत्री के भाषण पर चुनावों में ध्रुवीकरण करने का आरोप लगा रहे हैं. अपने देश के चुनावों में धर्म और जाति निर्णायक भूमिका में रही है, और इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता. सभी राजनीतिक दल कमोबेश अपने पक्ष में इसका इस्तेमाल करते आए हैं.

निश्चित रूप से किसी भी लोकतांत्रिक देश के चुनावों में न जाति और धर्म का इस्तेमाल होना चाहिए और न ही किसी सरकार के भेदभाव के आधार पर किए जाने वाले कार्यों को जायज ठहराया जा सकता है.

चूंकि, लोकतंत्र की मूल भावना ही विधि के शासन पर टिकी है अर्थात कानून के समक्ष सब बराबर हैं, इसलिए सरकार द्वारा जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव करना लोकतंत्र के मूल सिद्धांत के प्रतिकूल हैं, और ये समाज को जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम करती हैं. इन्हीं प्रतिकूल बातों को ध्यान में रखकर हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने चुनावों में धर्म और जाति के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने का फैसला दिया है.

राजनीतिक दल के नेताओं को इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि उनके भाषणों और बयानों से सामाजिक विद्वेष का माहौल न बने. लोकतंत्र की अपनी मर्यादा है, लेकिन इन चुनाव में ये देखने में आ रहा है कि प्राय: सभी राजनीतिक दल लोकतांत्रिक मर्यादा का उल्लंघन कर रहे हैं. इसके कारण निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश में सामाजिक विद्वेष का माहौल तो तैयार हुआ ही है.
 



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