यह कैसी दलील!

Last Updated 21 Feb 2017 05:49:26 AM IST

नोटबंदी मोदी सरकार का सबसे दिलेरी वाला फैसला भले था. लेकिन अब सरकार इससे जुड़ी कोई भी जानकारी सार्वजनिक करने को राजी नहीं दिखती है.


यह कैसी दलील!

सरकार की दलील है कि 500 और 1000 के नोटों को अमान्य करने के निर्णय और बैठकों से जुड़ा ब्योरा देने से देश के आर्थिक हितों पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है.

सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय से 8 नवम्बर 2016 के विमुद्रीकरण के निर्णय के संबंध में देश में अब तक जारी की गई मुद्रा की मात्रा, प्रकार, नोटिंग, मुद्रा जारी किए जाने के संबंध में आरबीआई की नोटिंग आदि के बारे में जानकारी मांगी गई थी.

हास्यास्पद बात यह है कि जो सरकार नोटबंदी के फैसले को भारतीय राजनीति का सबसे अहम निर्णय बता रही हो, वह इससे जुड़ी जानकारी मुहैया कराने को लेकर बेहद थोथी और सतही दलील क्यों तलाश रही है? हमेशा अपनी कार्यशैली और चिंतन में पारदर्शिता की बात करने वाली सरकार किस बात से पीछे हट रही है, यह समझ से परे है. स्वाभाविक है, सरकार के लिए नोटबंदी का निर्णय बेहद जोखिम भरा था.

तमाम उतार-चढ़ाव, निंदा और आरबीआई के रोज-रोज बदलते निर्देश और नियमों ने जनता को खासा परेशान किया. यहां तक कि आर्थिक विशेषज्ञों ने विमुद्रीकरण के फैसले की उपयोगिता और सार्थकता को लेकर सवाल उठाए. छोटे व्यवसाय को ज्यादा हानि उठानी पड़ी है और उनका आक्रोश किसी से छुपा नहीं है. नोटबंदी की आंच पर विभिन्न दलों ने सियासी रोटियां भी जमकर सेंकी. सरकार के लिए अपने इस ऐतिहासिक फैसले का बचाव करने में काफी बाधा भी आई. दरअसल, नोटबंदी लागू करने के तरीकों पर शुरू से ही असमंजस की स्थिति रही.

खासकर आरबीआई की स्वायत्तता को लेकर विपक्ष ने सरकार की काफी लानत-मलानत भी की. जाहिर है सरकार को इस बात का डर है कि अगर नोटबंदी से जुड़ी जानकारियां साझा की गई तो उनकी किरकिरी ज्यादा होगी. शायद इसी झेंप से बचने के वास्ते सरकार ने आर्थिक हितों की आड़ ली है. मगर सरकार को जनता और बाजार में व्याप्त ऊहापोह को दूर करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए.



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