कौन है जिम्मेदार
उत्तर प्रदेश के एटा में बृहस्पतिवार को हुए भीषण सड़क हादसे में 15 से ज्यादा स्कूली बच्चों की मौतें सिस्टम के तार-तार होने की सबूत हैं.
कौन है जिम्मेदार |
इन मासूमों की दर्दनाक अकाल मौत का जिम्मेदार कौन है? सवाल कई सारे हैं. मसलन, प्रशासन की तरफ से ठंड की वजह से स्कूलों की छुट्टी के आदेश के बावजूद स्कूल कैसे खुला था?
स्कूल की बस में क्षमता से ज्यादा बच्चे क्यों सवार थे? ड्राइवर के पास स्कूल बस का परमिट क्यों नहीं था? और इन बातों की अनदेखी क्यों की गई? साफ है कि प्रशासन और स्कूल प्रबंधन की ये लापरवाही मासूमों की जानों पर भारी पड़ गई.
दिल्ली में 1997 में 28 बच्चों की मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्कूली बसों के लिए विशेष नियम बनाए. जैसे, बस की स्पीड 40 किमी प्रति घंटे से ज्यादा नहीं होगी, बस में पानी, फस्र्ट एड बॉक्स, स्कूल बैग रखने की जगह और अग्निशमन यंत्र रखे जाएं. बसों की खिड़कियां अच्छी तरह से लोहे के रॉड से घिरी हों.
साथ ही, बस में स्कूल द्वारा नियुक्त एक सुपरवाइजर हो, जो बच्चों और ड्राइवर पर नजर रख सके. लेकिन सभी नियमों को दरकिनार कर दौड़ रही बस ने स्कूल जाते बच्चों को मौत के मुंह में धकेल दिया. देखा गया है कि स्कूल हमेशा से नियमों की अनदेखी करते हैं. कभी मिड डे मिल में विषाक्त पदाथरे के चलते बच्चों की मौत का मसला हो या बच्चों की पिटाई का.
स्कूलों के खिलाफ ऐसे मामलों में शिकायतें आती रहती हैं. विडम्बना है कि इन शिकायतों पर कार्रवाई न के बराबर होती है. सिस्टम भी वह स्कूल प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई करने से डरता है. फौरी तौर पर भले निलंबन की रस्म अदा कर दी जाती है. मगर लंबे समय तक याद रखने लायक कोई नजीरी कार्रवाई किसी भी स्तर पर नहीं देखी गई.
हालांकि, सिर्फ सरकार या स्कूल प्रबंधन पर दोष मढ़ देना समस्या का समाधान नहीं है. अभिभावकों की जिम्मेदारी कहीं ज्यादा है; क्योंकि जब बस में सीट 24 बच्चों की थी तो 50 से ज्यादा बच्चों को बिठाने पर सवाल क्यों नहीं उठाया गया या पैरेंट्स मीटिंग में कितने अभिभावक स्कूल प्रबंधन से बसों के संचालन पर अपनी राय जाहिर करते हैं?
‘स्कूल चलें हम’ का अभियान भले जोर-शोर से चलाया जाता हो, लेकिन बच्चे सुरक्षित वहां तक कैसे पहुंचें; इसका भी विचार रखना चाहिए. यह पहले मायने रखता है. काश, स्कूल प्रबंधन नियमों की महत्ता को प्राथमिक स्तर पर भी समझ ले तो ऐसे हादसे अंतिम हो सकते हैं. बचाव के स्तर पर भी चाक-चौबंद होने की महती जरूरत है पर इसका स्वांग करने से भी बचना है.
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