आर्थिक तकाजा है यह
नरेन्द्र मोदी सरकार करदाताओं को आयकर में छूट देने का मन बना चुकी है.
आर्थिक तकाजा है यह |
इस बाबत संकेत वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राजस्व सेवा के अधिकारियों के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दिए हैं. जेटली के मुताबिक, करों की दरें कम करने का समय आ चुका है.
इससे सेवाओं को अधिकाधिक वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाकर आमदनी बढ़ाया जाना आसान हो जाएगा. दरअसल, नोटबंदी के बाद सभी की नजरें इस ओर हैं कि सरकार आगामी वर्ष के लिए कैसा आम बजट पेश करती है. कुछ लोगों का मानना है कि लोक लुभावन बजट लाने के लिए सरकार पर इन्तिहा दबाव रहेगा. हालांकि वित्त मंत्री इस बात को खारिज कर चुके हैं.
भले ही लोक लुभावन जैसा कोई कारक बजट में न भी हो तो भी वस्तुस्थिति यही है कि आने वाले विधान सभा चुनावों की तैयारी में सरकार कोई कोताही या कहें कि नादानी नहीं करना चाहेगी. यकीनन उस पर ऐसा दबाव रहना ही है कि उसके फैसलों से लोगों को अपने हालात कसते नहीं दिखलाई पड़ें. हालांकि आयकर में छूट बढ़ाने की बात में लोक लुभावन से कहीं ज्यादा आर्थिक कारक निहित हैं.
नोटबंदी के कारण नकदी का प्रवाह बेहद संकुचित हो जाने से नकदी में खरीदफरोख्त बेहद कम हो गई है. इसके लिए सरकार लोगों को डिजिटल भुगतान करने के लिए बड़े स्तर पर जागरूक करने में जुटी है. लेकिन लोगों के ज्यादा से ज्यादा जागरूक होने और नकदी का पर्याप्त प्रवाह बढ़ने, दोनों ही मामलों में कुछ महीने तो लग ही जाने हैं. वैसे भी डिजिटल लेन देन को सुगम करने की गरज से अभी देश में अपेक्षित ढांचा आधार नहीं है.
देश की 73 प्रतिशत आबादी की पहुंच अभी भी इंटरनेट तक नहीं है. डिजिटल साक्षरता की कमी वाले इन हालात में नकदीरहित होने से आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव लाजिमी है. ऐसी खबरें हैं कि कारोबारियों का माल नहीं बिक रहा. बाजार में मांग में खासी कमी हो गई है. आयकर में छूट से आमजन के पास खर्च करने योग्य आय बढ़ेगी.
वह ज्यादा खर्च करने को प्रेरित होगा. नतीजतन, बाजार में मांग का इजाफा होगा. और आर्थिक गतिविधियां ठप हो जाने का अंदेशा टल सकेगा. व्यक्तिगत ही नहीं कॉरपोरेट क्षेत्र को भी कर में कटौती की राहत देने की दरकार है. कॉरपोरेट कर को 25 प्रतिशत के स्तर पर लाया जाना चाहिए. बहरहाल, कर छूट लोक लुभावन से ज्यादा आर्थिक तकाजों के चलते मिलनी है.
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