टोल पर टकराव

Last Updated 28 Oct 2016 02:23:55 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिल्ली-नोएडा डायरेक्ट (डीएनडी) टोल टैक्स में छूट देकर नोएडा-दिल्ली आने-जाने वालों को दीपावली से पहले तोहफा दे दिया है.


टोल पर टकराव

सालों से टोल टैक्स खत्म करने की मांग की जा रही थी. चार साल पहले फेडरेशन ऑफ नोएडा रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने मुकदमा दर्ज कराया था.

चार साल में 70 सुनवाई के दौरान अदालत ने महसूस किया कि टोल की लागत से ज्यादा पैसा वसूला जा चुका है. अब जनता से टैक्स लेने का कोई औचित्य नहीं है. यह एक तरह की अवैध वसूली है. चूंकि, देश में हर जगह टोल प्लाजा हैं और उनके खिलाफ जनता का गुस्सा भी हर जगह है.

कभी ज्यादा टैक्स वसूलने को लेकर हिंसक प्रदर्शन, कभी बदइंतजामी को लेकर और कभी सड़कों के घटिया रख-रखाव को लेकर. लेकिन डीएनडी टोल प्लाजा का विवाद इस मायने में अनूठा है कि जिस टोल के बनने में 408 करोड़ का खर्च आया, अब कंपनी की दलील है कि वह लागत बढ़कर 31 मार्च 2011 तक 2168 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है. और गड़बड़झाले इसी बिंदु पर है कि पैसा वसूलते रहने के बावजूद लागत कैसे बढ़ती जा रही है?

पूरे विवाद का असली कारण टोल टैक्स नीति में खामी है. सवाल यह भी कि जब सरकार सड़क, पुल, हाईवे जैसे बुनियादी ढांचे के लिए टैक्स वसूलती है तो कुछ सड़कों के लिए अलग से टैक्स क्यों? इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि डीएनडी प्रबंधन ने अपने यहां वरिष्ठ नौकरशाहों को मोटी तनख्वाह पर रखा है, वह करते क्या हैं? जिन अधिकारियों ने गलत तरीके से लागत का पैमाना तैयार किया, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए. कहीं यह काली कमाई को सफेद करने का रास्ता तो नहीं था.

इसके अलावा, कोर्ट को टोल कर्मचारियों के भविष्य के बारे में भी संजीदगी से सोचना होगा. इसलिए कि टोल बंद होने की सूरत में वहां के कर्मचारी फिलहाल बेरोजगार हो जाएंगे. साथ ही, आरएफडी, गोल्ड और सिल्वर कार्डधारकों की सिक्योरिटी कंपनी के पास जमा हैं. यह रकम वापस होगी कि नहीं? चूंकि, गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है तो उस फैसले का इंतजार है; क्योंकि वहां से निकला फैसला देश के बाकी टोल प्लाजा के लिए नजीर बनेगा.



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