प्रचार में प्रियंका

Last Updated 26 Oct 2016 04:13:01 AM IST

आखिरकार कांग्रेस आलाकमान और पार्टी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ‘पीके’ ने तुरुप का पत्ता चल ही दिया.


प्रचार में प्रियंका

कांग्रेस के तुरुप का पत्ता यानी प्रियंका गांधी. पहली बार उत्तर प्रदेश की अहम बैठक में प्रियंका आधिकारिक तौर पर शामिल हुई.

27 साल से उत्तर प्रदेश में सियासी बियावान में पड़ी कांग्रेस में सत्ता में वापसी की बेचैनी है. अरसे से जमीनी स्तर से लेकर ब्लॉक स्तर तक के कार्यकर्ता और गांधी परिवार के करीबी सूबे में प्रियंका गांधी को कमान सौंपने की मांग कर रहे थे.

लेकिन पार्टी पसोपेश में है, क्योंकि इसके फायदे के साथ-साथ नुकसान का डर भी कांग्रेस नेतृत्व को सताता रहा है. प्रियंका की यूएसपी उनका बेलौस अंदाज और जनता से कनेक्ट करने की ताकत है. साथ ही प्रियंका गांधी में कांग्रेसियों को उनकी दादी इंदिरा गांधी की झलक दिखती है. उनकी इसी छवि से विरोधी हलकान हैं.

विरोधियों को भी लगता है कि अगर कांग्रेस ने यूपी में प्रियंका को दांव पर लगाया तो फिर मुकाबले में कांग्रेस की वापसी हो जाएगी. इसमें दो राय नहीं कि प्रियंका के आने से कांग्रेस को फायदा होगा. गांधी परिवार के परंपरागत मतदाता एक बार फिर कांग्रेस में लौटने के बारे में विचार कर सकते हैं. हालांकि, एक डर कांग्रेस को हमेशा से सताता रहा है कि अगर प्रियंका के मैदान में उतरने के बावजूद अपेक्षाकृत प्रदर्शन नहीं कर सकी और ऐसे आसार ज्यादा हैं क्योंकि कांग्रेस का जनाधार नहीं है, तो 2019 में केंद्र में वापसी की राह बेहद कठिन हो जाएगी.

चूंकि, पिछले महीने से और विगत दो-तीन दिनों में सत्तारूढ़ समाजवादी परिवार में जो खींचतान मची है, उसे देखते हुए कांग्रेस का प्रियंका को सियासी मंच पर उतारने का ऐलान दूरगामी संदेश दे रहा है. राज्य में राजनीतिक उठापटक का फायदा लेने के संदर्भ में भी इसे देखने की जरूरत है.

वैसे, प्रियंका कितनी सक्रिय रहेंगी इस पर अभी अंतिम फैसला नहीं हुआ है. लेकिन दिवाली के बाद एक बार फिर वरिष्ठ नेताओं की बैठक होगी, जिसमें उम्मीद है कि प्रियंका अपना फैसला सुनाएंगी. अगर सब कुछ ठीक रहा तो उन्हें इंदिरा गांधी के जन्मदिन 19 नवम्बर को लांच कर दिया जाएगा. अब भाजपा और बसपा को भी अपनी रणनीति में बदलाव करने को मजबूर होना पड़ेगा.

प्रियंका गांधी के उतरने की सूरत में विरोधी पार्टियां क्या कुछ करेगी, यह तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में है. मगर ‘पीके’ के ट्रंप कार्ड की मारक क्षमता की जद में हर पार्टी और उनके नेता आ सकते हैं.

संपादकीय लेख


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