गलत संस्कृति

Last Updated 24 Oct 2016 05:09:04 AM IST

निर्माता-निर्देशक करण जौहर यकीनन राहत महसूस कर रहे होंगे. अब उनकी फिल्म \'ये दिल है मुश्किल\' के प्रदशर्न का रास्ता साफ हो गया है. किंतु जिस तरह से यह हुआ वह चिंतित करने वाला है.




गलत संस्कृति

पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के कारण देश में गुस्सा स्वाभाविक है और इसका निशाना उन फिल्मों को बनना ही था, जिनमें पाकिस्तानी कलाकार हैं. देश का गुस्सा इसलिए भी बढ़ गया था, क्योंकि भारतीय फिल्मों मे काम कर करोड़ों कमाने वाले इन कलाकारों में से किसी ने उरी में आतंकवादी हमले की भर्त्सना नहीं की.

अब कौन फिल्म चलेगी, कौन नहीं; यह निर्णय करना सरकार का काम है. कोई राजनीतिक दल या संस्था यदि फिल्मों को प्रतिबंधित करने या न चलने की धमकी देने लगे और निर्माताओं के साथ सरकार तक को उसके सामने समझौता करना पड़े यह किसी सामान्य कानून-राज का प्रमाण नहीं हो सकता. इस मामले में ऐसा ही हुआ है.

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना एवं उनके नेता राज ठाकरे ने फिल्म को न चलने देने का ऐलान किया और संयोग से जनता द्वारा चुनाव में ठुकराए जाने के बावजूद यह मामला ऐसा था कि इसने लोगों को अपील की. एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में मनसे या किसी संगठन को अपना विरोध प्रकट करने का अधिकार है. हां, विरोध का प्रकटीकरण अहिंसक होना चाहिए. इस तरह कहा जा सकता है कि मनसे का तरीका बिल्कुल गलत और अस्वीकार्य था.



सिनेमा के व्यवसाय में लगे लोगों के लिए भी कमाई महत्त्वपूर्ण है और करण के सामने फिल्म में लगा धन डूबने का खतरा पैदा हो गया था. उन्होंने प्रोड्यूसर गिल्ड के साथ मिलकर समझौते की मिन्नतें कीं और यह हो गया. हालांकि सेना ने 5 करोड़ रुपये राहत कोष में देने को उचित नहीं कहा है. उसका कहना है, 'हमें विवाद में न घसीटा जाए.' लेकिन मनसे के दबाव में और मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की मध्यस्थता में यह फैसला हुआ.

प्रश्न है कि अगर सरकार ने फिल्म को प्रतिबंधित नहीं किया था तो फिर प्रदर्शन को सुरक्षा देना उसकी जिम्मेवारी थी. वह सिनेमा टिकट की बिक्री पर मोटा कर वसूलती है. इसकी जिम्मेवारी निभाने की बजाय वह किसी गैर सरकारी शक्ति के प्रतिबंध के आगे झुके, यह गलत कार्य-संस्कृति को बढ़ावा देने वाला साबित होगा.

 

 

संपादक की कलम से


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