मुश्किलें अब भी

Last Updated 22 Oct 2016 02:33:11 AM IST

राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर करने और उसके बाद आधा से ज्यादा राज्यों द्वारा जीएसटी पारित किए जाने के बाद यह लग रहा था कि अब इसके रास्ते की मुश्किलें खत्म हो गई हैं.


मुश्किलें अब भी

यानी 1 अप्रैल 2017 से देश में समान कर व्यवस्था प्रणाली बिना किसी बाधा के लागू हो जाएगी. किंतु जीएसटी परिषद की बैठक में दरों का तय नहीं होना तथा इसे लेकर सरकार-विपक्ष के बीच उभरता मतभेद यह बताता है कि इसके रास्ते अभी कई बाधाएं हैं. इनसे पार पाना होगा. सरकार चार स्तरीय कर ढांचा का प्रस्ताव ला रही है, जो कांग्रेस सहित विपक्ष की कुछ पार्टयिों को स्वीकार नहीं है. ये दो स्तरीय कर चाहते हैं. फिर दरों को लेकर भी सहमति नहीं है.

सरकार का कहना है कि चार स्तरीय कर ढांचा कुछ इस तरह तैयार किया गया है कि न तो राजस्व का नुकसान हो और न ही आम आदमी की कर देनदारी में बढ़ोतरी हो. इस तर्क से यदि विपक्ष सहमत नहीं होता है तो संसद में फिर इस पर बावेला हो सकता है. केंद्र ने 6, 12, 18 और 26 प्रतिशत दर से कर लगाने की पेशकश की है.

सेवाओं पर 18 प्रतिशत तथा विलासिता की वस्तुओं पर 26 प्रतिशत कर का प्रस्ताव है. इन पर उपकर भी जारी रखे जाने की योजना है. सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम के नेतृत्व वाली समिति ने जीएसटी दर 16.9-18.9 प्रतिशत के बीच करने की सिफारिश की थी. इसने विलासिता संबंधी वस्तुओं पर 40 प्रतिशत तक कर की अनुशंसा की थी. चार दरें लागू होने का अर्थ इतना तो है ही कि अलग-अलग गणना करने की जो समस्याएं थीं, वह कायम रहेंगी.

सरकार का यह भी कहना है कि राज्यों की घाटे की भरपाई उपकरों से की जाएंगी. उपकर तो ऐसे कर हैं, जिन्हें सरकारें मनमाने तरीके से लागू करती रही हैं. जीएसटी के साथ इसके खत्म होने की संभावना व्यक्त की गई थीं.

सरकार को कुछ विशेषज्ञों की इस सलाह पर विचार करना चाहिए कि उपकर को भी जीएसटी का ही भाग बना दिया जाए ताकि भविष्य में मनमाने कर लगाने की संभावना रहे ही नहीं. जीएसटी का उद्देश्य करों को समान और सरल बनाकर उत्पादक एवं उपभोक्ता दोनों के सिर से बोझ घटाना, सरकार के खजाने में राजस्व सुनिश्चित करना तथा कर चोरी रोकना था. लेकिन अभी जो खबरें आ रही हैं, उनसे यह मकसद दूर छिटकता ज्यादा नजर आता है.

लोग-बाग महंगाई बढ़ने की आशंका से चिंतित होने लगे हैं. लिहाजा, सरकार करों की दर और प्रकार तय करते समय इसके असली उद्देश्य यानी अप्रत्यक्ष कर को सरल बनाने को न भूले और महंगाई को हद में रखने को भी.



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