जमानत रद्द, फिर जेल
शहाबुद्दीन फिर जेल में पहुंच गया है.यह सर्वोच्च न्यायालय की कृपा है. न्यायालय ने जिस तरह से बिहार सरकार को फटकार लगाई और उसकी आलोचना की; वह विपक्ष के लिए उद्धरण बन जाएगा.
शहाबुद्दीन की जमानत रद्द |
सर्वोच्च न्यायालय ने साफ पूछा कि जब शहाबुद्दीन को जमानत मिल रही थी तब क्या सरकार सोई हुई थी? वास्तव में 35 मामलों में शहाबुद्दीन को जमानत मिलना बिहार सरकार के कानून विभाग की निष्पक्षता पर बहुत बड़ा प्रश्न चिह्न है. कल्पना करिए यदि न्यायालय में मामला नहीं जाता तो क्या होता? जब शहाबुद्दीन के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल को हिस्ट्रीशीटर कहा जाता है, जबकि इसका कोई प्रमाण नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय का जवाब था कि दो मामले में इसी न्यायालय ने उसे हिस्ट्रीशीटर माना है.
क्या आप इस न्यायालय को गलत कहेंगे? हम इस बारे में आस्त हैं कि हिस्ट्ीशीटर को जमानत नहीं दी जा सकती है. सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी माना कि बिहार सरकार ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया. वास्तव में जमानत रद्द करने का आदेश बिहार सरकार के खिलाफ निंदात्मक टिप्पणी ही है. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि अगर बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में गठित जद यू, राजद एवं कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने मामले पर ठीक भूमिका निभाई होती तो शहाबुद्दीन को जमानत नहीं मिलती.
न्यायालय ने पूछा भी कि आप ऐसी कोई अर्जी दिखाइए जिसमें आपने उच्च न्यायालय से समय मांगा और आपको नहीं मिला? दुर्भाग्य से जदू यू एवं भाजपा सरकार के दौरान नीतीश ने शहाबुद्दीन के खिलाफ जितनी सख्ती बरती, जेल में उनके लिए अदालत लगाकर सजा दिलवाई; वह नीति महागठबंधन सरकार के बनते ही बदल गई. लगता है कि राजद का प्रभाव ज्यादा काम किया, क्योंकि जेल में रहते शहाबुद्दीन को राजद की कार्यकारिणी का सदस्य बना दिया गया.
तो क्या सर्वोच्च न्यायालय की निंदा के बाद यह उम्मीद की जा सकती है कि बिहार सरकार का कानून विभाग अपनी भूमिका ठीक से निभाएगा? हत्या के मामले में ट्रायल आरंभ न होने के कारण उसे जमानत दे दी गई थी. जरूरी है तेजाब कांड गवाह हत्याकांड की निचली अदालत में कानूनी प्रक्रिया के अनुसार सुनवाई हो एवं आरोप पत्र की कॉपी प्रदान की जाए. देखना होगा बिहार सरकार की भूमिका क्या रहती है. अभी तक के उसके रवैये को देखते हुए सहसा विश्वास नहीं होता कि शहाबुद्दीन के मामले में कानून के पालन की अपनी उचित भूमिका का निर्वहन करेगी.
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