संयत सुषमा
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में दिए गए भाषण की यदि प्रशंसा हो रही है तो यह स्वाभाविक है.
संयत सुषमा |
सुषमा के सामने मुख्यत: दो चुनौतियां थीं. नवाज शरीफ ने जो जहर उगला था उसका जवाब देना और भारत की विश्व की चिंता करने वाले व सबके साथ चलने वाले देश की छवि को भी पुख्ता करना था.
दूसरे शब्दों में कहें तो नवाज के स्तर पर उतरे बिना दृढ़ता से उनके झूठे आरोपों का विसनीय तरीके से खंडन करने की जिम्मेवारी उनके सिर पर थी. कहा जा सकता है कि इसमें वो सफल रहीं.
एक ओर उन्होंने विश्व संस्था के सतत विकास लक्ष्यों की चर्चा करते हुए उस दिशा में भारत के कदमों का उल्लेख किया तो दूसरी ओर पर्यावरण पर भारत के रु ख को स्पष्ट किया. दुनिया से गरीबी मिटाने और समृद्धि लाने के लिए काम करने का विजन दिया तो लैंगिक समानता की जरूरत भी जताई.
इन सबमें भारत की एक वैश्विक दृष्टि थी. इससे साबित हुआ कि तमाम झूठे और उत्तेजना पैदा करने वाले आरोपों के बावजूद भारत अपना संयम नहीं खोता तथा विहित के लिए सक्रिय रहने की कोशिश करता है. ऐसा माहौल बनाने के बाद जब आप कोई बात कहते हैं, तो उसकी विसनीयता बढ़ जाती है.
इसलिए सुषमा ने जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के आरोपों का संयत और दृढ़ता के सम्मिश्रण से उत्तर देना आरंभ किया, उनके झूठ का पर्दाफाश किया तो यकीन मानिए विश्व समुदाय ने इस पर ज्यादा विश्वास किया होगा.
सुषमा ने आतंकवाद को वैश्विक चुनौती बताते हुए जब एकजुट होकर उससे लड़ने में विश्व की अब तक की विफलता का जिक्र किया तो उसमें सबके लिए आत्ममंथन कर सुधार करने का भाव था. जब उन्होंने पाकिस्तान का नाम लिये बिना उसे आतंकवाद पैदा और निर्यात करने वाला बताते हुए दुनिया में अलग-थलग करने की बात कही तो इसका वजन बढ़ा हुआ था.
जिस लहजे में उन्होंने कहा कि अपनी हरकतों से जो समझते हैं कि भारत की एकता को खंडित कर देंगे तो यह उनकी भूल है. कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, और रहेगा. उनके कथन भारत के दृढ़ निश्चय और आस्त रहने की स्पष्ट झलक थी.
अगर एकाध देश नवाज शरीफ के भाषण से धोखे में आए होंगे तो उनकी भी आंखें खुल गई होंगी या वे सोचने को मजबूर हुए होंगे कि भई, भारत से इस मामले पर विरोध मोल न लेना ही ठीक है. तो यह मानने में गुरेज नहीं है कि सुषमा के भाषण से पाकिस्तान को अलग-थलग करने की दिशा में भारत एक कदम और आगे बढ़ा है.
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