मुसलमानों की सही जगह

Last Updated 27 Sep 2016 04:26:51 AM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोझिकोड में भाजपा की राष्ट्रीय परिषद में मुसलमानों के बारे जो कुछ बोला है, उस पर बहस चलनी चाहिए.


मुसलमानों की सही जगह

यह वर्ष भाजपा के पूर्वज जनसंघ के मुख्य विचारक प. दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती है. प्रधानमंत्री ने उन्हीं को उद्धृत करते हुए कहा कि मुसलमानों को न तिरस्कृत करें, न पुरस्कृत करें; उन्हें परिष्कृत करें. इसका अर्थ साफ है कि कुछ राजनीतिक दल जो मुसलमानों को वोट बैंक मानकर उन्हें गलत तरीके से अन्य समुदायों से ज्यादा महत्त्व देने में लगे रहते हैं, वह सही नहीं है.

और जो उन्हें बिल्कुल महत्त्व नहीं देते या उनका तिरस्कार करते हैं, वे भी गलत हैं. उनका यह कहना सही है कि मुसलमानों को वोट की मंडी समझने के बजाय उन्हें सामान्य नागरिक मानें और उसी के समान उनके साथ व्यवहार करें. हमारे देश की हालत यह हो गई है कि वोट खिसकने के भय से ज्यादातर दल मुसलमानों के बारे में सच बोलने की हिम्मत ही नहीं करते. उनके अंदर कुछ भी भाव रहता है, पर वे मुसलमानों के सामने इस तरह बोलेंगे मानो दूसरे समुदाय उनके सामने दोयम दर्जे के नागरिक हैं और उनकी चिंता सबसे ज्यादा की जानी चाहिए.

जिन पार्टियों ने मुसलमानों के हितैषी होने और उन्हें अन्य समुदायों से ज्यादा महत्त्व देने की बात की है, उनसे पूछा जाना चाहिए कि आखिर इसके बावजूद वे सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक विकास के मोर्चे पर इतने पीछे क्यों हैं? कारण साफ है, इनको वोट बैंक मानकर व्यवहार करने के लिए झूठ बोला गया है.

यह राजनीति आज तक चल रही है. इसके दुष्परिणाम देश में कई तरीकों से सामने आए हैं. एक बड़े वर्ग को लगा है कि पार्टियां मुसलमानों का तुष्टिकरण करती है और हमें नजरअंदाज. इससे उनके अंदर दुर्भाग्य से मुसलमानों के खिलाफ दुर्भावना पैदा हुई है.

दूसरे, इससे मुसलमानों में जो वास्तविक मुद्दों पर बात करने वाले नेता हैं, वह हाशिए पर रहे और जो कट्टरपंथी हैं, वे नेता बनकर उभर गए. इससे क्षति मुस्लिम समुदाय को ही हुई, क्योंकि उनके जीवन से जुड़े वास्तविक मुद्दे हाशिए पर रह गए. तीसरे, इससे मुसलमानों का बड़ा समूह राष्ट्र की मुख्यधारा में नहीं आ सका. प्रधानमंत्री का यह कहना सही है कि मुसलमानों को सशक्त बनाने की जरूरत है.

किंतु प्रश्न है कि जो पार्टियां मुसलमानों के वोटों से सत्ता तक पहुंचने की रणनीति अपनाती हैं, वह पीएम के वक्तव्य को स्वीकार करेंगी? आसानी से ऐसा नहीं करेंगी. तो मुस्लिम समुदाय को ही उनकी असलियत समझकर अपने सोच और व्यवहार को बदलना होगा.



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