तीसरे मोर्चे की पेशकश

Last Updated 27 Sep 2016 04:23:12 AM IST

देश में तीसरा मोर्चा बनाने की बात एक बार फिर परवान चढ़ने लगी है.


तीसरे मोर्चे की पेशकश

भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस से इतर तीसरे मोर्चे को लेकर जनता दल (यू), राष्ट्रीय लोक दल, समाजवादी पार्टी और इनेलो के नेता भूमिका बनाने में जुट गए हैं. चौधरी देवीलाल की जयंती के मौके पर सभी नेता एक जगह जुटे भी और भविष्य को लेकर मंथन भी किया. चूंकि इनमें से जद (यू) को छोड़ दें तो बाकी पार्टियों का पुख्ता आधार किसान रहे हैं. सो, किसान और किसानी को लेकर हर सियासी दल संजीदा है.

उन्हें संगठित करने की रणनीति भी इन लोगों के एजेंडे में है. मगर सिर्फ इस तबके को अपने पाले में करने भर से मोर्चा मजबूत हो जाएगा, ऐसा भी नहीं है. क्योंकि किसानों पर लाड़-प्यार कांग्रेस भी लुटा रही है.

लाजिमी है, कांग्रेस से किसानों को तितर-बितर करने के लिए इन्हें मेहनत भी करनी होगी. पर इससे बड़ी चुनौती तीसरे मोर्चे को आकार देने और उसे परिपक्वता तक लाने की है. शुरुआत में तो मिठास की भरमार है. किंतु जब मसला प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार तय करने का आएगा, तभी विचारों में अलगाव भी दिखेगा और खटास भी.

जिन दलों में आज एकजुटता दिख रही है, उनमें भी अंदरखाने काफी मत भिन्नता है. यही वजह है कि नीतीश ने तीसरे मोर्चे के गठन या ऐसी किसी पेशकश पर चुप्पी साध ली. उन्हें मालूम है, सतही तरीके से आगे बढ़ना हाराकिरी करने जैसा होगा. बिना किसी ठोस रणनीति के भाजपा के खिलाफ खड़ा होना समझदारी नहीं होगी.

दूसरी अहम बात यह कि जिन मुद्दों को लेकर जनता में भाजपा के खिलाफ आक्रोश है, उसे भी सही करीने से अपने तरकश में सजाना होगा. तभी ‘रणक्षेत्र’ में निशाने सटीक लगेंगे. आम चुनाव में अभी ढाई साल का लंबा वक्त है. सो, हर दल अपने नफा-नुकसान का आकलन कर लेना चाहता है. तीसरे मोर्चे का शिगूफा शगल भर न हो, इसके वास्ते मुकम्मल तैयारी की जरूरत है. मगर एक विचार, एक मन:स्थिति में आने तक का मार्ग ही अत्यंत दुष्कर है.

नीतीश इस तथ्य से बखूबी वाकिफ हैं. कारण कि शराबबंदी के फैसले को लेकर बाकी दलों के विचारों में सहमति नहीं है. चाहे वह सपा हो या अन्य दल. चुनांचे, सबसे पहले एक आम समझ का विचार विकसित करने और उसी पर कायम रहने की चुनौती चुनाव में जाने से ज्यादा बड़ी है.



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