अब पीलीभीत
फिर देश के लोगों का सिर शर्म से झुका है. उत्तर प्रदेश के पीलीभीत का एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें एक व्यक्ति अपने पिता का शव ठेले पर लेकर जा रहा है.
अब पीलीभीत में लोगों का सिर शर्म से झुका (फाइल फोटो) |
खबर के अनुसार सूरज नामक एक युवक को दोहरी त्रासदी झेलनी पड़ी. पहले उसने अपने पिता तुलसीराम को बीमार होने पर अस्पताल में भर्ती कराने की कोशिश की, किंतु उसे सफलता नहीं मिली. वह जिला अस्पताल के आपातकालीन वार्ड में पहुंचा. लेकिन उसको बताया गया कि वहां कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं है. इसलिए साढ़े नौ बजे वह मरीज को लेकर आया तो उसे भर्ती किया गया.
मगर तब तक उसके मरीज पिता उसकी तबीयत बिगड़ चुकी थी. दो घंटे के अंदर उसकी मृत्यु हो गई. यहां से दोहरी त्रासदी शव ले जाने की आरंभ हो गई. उसे जब किसी तरह कोई एंबुलेंस या शव वाहन नहीं मिला तो उसने एक ठेला भाड़े पर लिया और उसी से शव लेकर चला गया.
आखिर हम कैसा देश बना रहे हैं? एक ओर हम विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होने का दावा करते हैं और दूसरी ओर कभी ओडिशा तो कभी मध्य प्रदेश तो कभी उत्तर प्रदेश से ऐसी खबरें आतीं हैं, जिनसे व्यवस्था की अमानवीयता का पता चलता है.
सूरज के अनुसार पिता की तबीयत खराब होने पर उसने सरकारी एंबुलेंस बुलाने के लिए फोन किया था. लेकिन फोन किसी ने नहीं उठाया. समय पर उसे एंबुलेंस या कोई दूसरी सवारी मिल जाती तो वह रात को अस्पताल पहुंच सकता था. यह किसी एक जगह की स्थिति नहीं है. चारों ओर एंबुलेंस और आपात सेवाओं के नंबरों की यही दशा है.
पीलीभीत अस्पताल में भी शव वाहन की व्यवस्था नहीं है. जब जिला मुख्यालय में यह स्थिति है तो दूरस्थ इलाकों में क्या होता होगा? सरकारी एंबुलेंस के लिए कोई संपन्न वर्ग का व्यक्ति फोन नहीं करता, न सरकारी अस्पतालों में वह जाता है.
आम गरीब के लिए सरकारी अस्पताल और उसके अन्य संसाधन ही उम्मीद के केंद्र हैं. पर ये केंद्र भी ज्यादातर समय उम्मीदों को आघात पहुंचाते हैं. लिहाजा, राज्य सरकारें अपने द्वारा दी जाने वाली ऐसी व्यवस्था के अद्यतन होने का सर्वे करे और उनके निष्कर्षों के मुताबिक अमल करे. इससे गरीब इलाज के अभाव में जीते जी नहीं मरेंगे.
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