समझौते के निहितार्थ

Last Updated 01 Sep 2016 12:45:15 AM IST

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अमेरिकी यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच संपन्न रक्षा समझौते को लेकर देश में एक राय नहीं हो सकती.


समझौते के निहितार्थ

बावजूद इसके यह स्वीकार करना होगा कि रक्षा साजो-सामान संबंधी आदान-प्रदान समक्षौता जिसे ‘लेमोआ’ कहा जा रहा है वह ऐतिहासिक है.

इस समझौते के द्वारा दोनों देश एक-दूसरे के सैन्य साजो-सामान और सैन्य अड्डों का इस्तेमाल कर सकेंगे. थोड़े शब्दों में कहें तो इससे दोनों देश रक्षा क्षेत्र में साजो-सामान संबंधी निकट के साझेदार बन गए हैं. अब दोनों देशों की सेनाएं मरम्मत एवं आपूर्ति के लिए एक-दूसरे के संसाधनों और सैनिक अड्डों का इस्तेमाल कर सकेंगी.

समझौते पर हस्ताक्षर के बाद जारी साझा बयान में कहा गया कि यह व्यवस्था रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार सहयोग में नवोन्मेष और अत्याधुनिक अवसर प्रदान करेगा. यह आशंका निराधार है कि इसके बाद भारतीय क्षेत्र में अमेरिका सैनिक अड्डा बना लेगा.

संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में ही पर्रिकर ने साफ कहा कि हमारे देश में किसी दूसरे देश के रक्षा अड्डा बनाने का कोई प्रावधान नहीं है. इसलिए इस संबंध में किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए. लेमाआ केवल भारत और अमेरिका की सेनाओं के बीच प्रतिपूर्ति के आधार पर साजो-सामान संबंधी सहयोग, आपूर्ति और सेवाओं का प्रावधान करता है, इनके संचालन की रूपरेखा उपलब्ध कराता है.

इसमें भोजन, पानी, परिवहन, पेट्रोल, तेल, कपड़े, चिकित्सीय सेवाएं, कलपुर्जे, मरम्मत एवं रखरखाव की सेवाएं, प्रशिक्षण सेवाएं और अन्य साजो-सामान संबंधी वस्तुएं शामिल हैं. समझौते के तहत दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे की जमीन, वायु और नौसैनिक अड्डे की आपूर्ति, मरम्मत और जवानों के आराम करने के लिए उपयोग कर सकते हैं.

चीन इस पर क्या प्रतिक्रिया देता यह हमारे लिए ज्यादा मायने नहीं रखता. चीन पाकिस्तान के साथ पाक अधिकृत क्षेत्र से लेकर बलूचिस्तान तक आर्थिक गलियारा बना रहा है और ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर रहा है. भारत को दूरगामी रक्षा सुरक्षा परिदृश्यों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर अपनी रणनीतियां बनानी है और यह रक्षा समझौता उसी दिशा में उठाया गया कदम है. हम न भूलें कि भारत इस समय संसार का बड़ा हथियार आयातक है. इस स्थिति को बदलना जरूरी है.

समझौते से भारत में ही परिष्कृत हथियारों एवं सामान का निर्माण किया जा सकेगा. इससे नई पीढ़ी के हथियारों को लेकर तकनीक स्थानांतरण में मदद मिलेगी.



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