नवाज का रुख
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा कश्मीर पर दुनिया के देशों के सामने पाकिस्तान का पक्ष रखने के लिए 22 सांसदों के समूह का गठन बहुत कुछ कहता है.
नवाज का रुख |
इसका पहला अर्थ तो यही है कि पाकिस्तान तत्काल भारत के साथ किसी तरह के सुलह के पक्ष में नहीं है.
वह जम्मू कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ अपना आक्रामक तेवर बनाए रखेगा. जो संभावना है; नवाज शरीफ स्वयं इस बार संयुक्त राष्ट्रसंघ के सम्मेलन में थोड़ा ज्यादा विस्तार से कश्मीर राग अलापेंगे. किंतु क्या इससे भारत को परेशान होने की जरूरत है?
इसका उत्तर है, नहीं. जिन देशों के सामने अपनी बात रखने के लिए सांसद जाएंगे उनमें चीन को छोड़कर शायद ही ऐसा कोई देश है जो पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति दिखाएगा. चीन भी एक सीमा से आगे भारत के खिलाफ नहीं जा सकता. इसमें ऐसा कोई देश नहीं है, जिसने आतकवादी हमला झेला नहीं है. फ्रांस के आतंकवादी हमले के तार पाकिस्तान तक भी पहुंचे है.
लाजमी है, वह आतंकवाद पर भारत की ही सुनेगा ना कि पाकिस्तान की. अमेरिका के सामने तो पाकिस्तान नंगा है. उसने हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ काम न करने के कारण उसका रक्षा सहयोग ही कम नहीं किया बल्कि सहायता राशि भी कम कर दिया है. बेल्जियम ने भी आतंकवादी हमला झेला है. उसे पता है कि कैसे पाकिस्तान आतंकवाद का हब बना है?
तुर्की का शासन हालांकि इस समय कट्टर इस्लाम की ओर बढ़ रहा है. लेकिन उसके लिए भी आतंकवाद पर नियंत्रण प्राथमिकता होगी. सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात पाकिस्तान के दोस्त हो सकते हैं. मगर स्वयं सऊदी अरब में आतंकवादी हमले में पाकिस्तान के आतंकवादियों का हाथ निकला है. कहने का तात्पर्य यह कि पाकिस्तान चाहे दुनिया भर में अपने सांसदों को घुमाए, वहां जाकर भारत की बुराई करे और जार-जार राये-आतंकवाद को पालकर और प्रायोजित कर उसने अपनी इज्जत धूल में मिला दी है और उसकी बातों पर शायद ही कोई यकीन करे.
इसके विपरीत भारत की एक लोकतांत्रिक उदार देश की छवि है. वस्तुत: भारत ने गिलगित-बलतिस्तान सहित पाक अधिकृत कश्मीर और बलूचिस्तान का मुद्दा उठाकर ईट का जवाब पत्थर से देने की जो नीति अपनाई उससे पाकिस्तान की तिलमिलाहट बढ़ गई है और उसे समझ नहीं आ रहा कि इनका जवाब वह कैसे दे. अब तो उसके लिए एक ही रास्ता समझदारी का बचता है और वह है आतंकवाद की नीति का त्याग करना. फिलहाल तो इंतजार ही करें.
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