महबूबा का असमंजस

Last Updated 29 Aug 2016 05:03:15 AM IST

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात के बाद जो कुछ कहा, उससे उनकी पीड़ा और छटपटाहट साफ झलकती है.


महबूबा का असमंजस

पाकिस्तान और कश्मीर में हिंसा कराने वालों पर बरसते हुए दो दिनों में दो बार महबूबा को देश ने देखा है. हालांकि उनकी बातों से यह संकेत तो मिलता है कि वो पाकिस्तान के साथ भारत के बातचीत के पक्ष में हैं. लेकिन उनको यह भी पता है कि मौजूदा हालात में यह मुमकिन नहीं. पाकिस्तान के संदर्भ में सरकार की नीति है कि केवल पाक अधिकृत कश्मीर पर बात होगी. यहीं उनकी दुविधा जाहिर होती है.

वह कहतीं हैं कि अब पहल तो पाकिस्तान को ही करनी होगी. हमारे वजीर-ए-आजम उनके यहां गए और हमारे गृहमंत्री के साथ वहां जो व्यवहार हुआ वह नहीं होना चाहिए था. अगर उनको बातचीत करनी थी तो गृहमंत्री वहां थे. वे कर सकते थे.

मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें कश्मीर में शांति तो चाहिए. इसका रास्ता क्या हो सकता है? इसका कोई सूत्र उनके पास नहीं है. इसलिए वह मीडिया से भी आग्रह करतीं हैं कि आप लोग भी सहयोग कीजिए. यह अच्छी बात है कि महबूबा को हिंसा की साजिश रचने वालों की पहचान हो गई है. महबूबा और उनके पिता स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद अलगाववादियों, आतंकवादियों एवं पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अपनाते रहे हैं.

महबूबा का मौजूदा तेवर थोड़ा अलग संकेत देता है. वह कहतीं हैं कि जो लोग बच्चों को हिंसा के लिए उकसा रहे हैं और कह रहे हैं कि पत्थर मारो बस आजादी मिल जाएगी वे कश्मीरियों के दोस्त नहीं हो सकते. लेकिन अगले पल उनकी ओर से प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात का जो औपचारिक बयान दिया गया उसमें अटलबिहारी वाजपेयी की तरह जम्मू-कश्मीर के लिए वार्ताकार नियुक्त करने के सुझाव की बात है.

प्रश्न है कि उन्हीं की नजर में अगर पाकिस्तान कश्मीर में हिंसा के लिए जिम्मेवार है और अलगाववादी घाटी में बैठकर हिंसा करा रहे हैं तो फिर उनसे बातचीत कैसे हो सकती है? यह ऐसा प्रश्न है, जिसका जवाब महबूबा को स्वयं पता नहीं है. प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया है कि संविधान के दायरे में बातचीत और समाधान की हर मुमकिन कोशिश होगी.

संविधान का दायरा आते ही अलगाववादी बातचीत के दायरे से बाहर चले आते हैं, क्योंकि वह संविधान को नहीं मानते. राजनाथ के दौरे के दौरान पत्रकार वार्ता में भी महबूबा हिंसा कराने वालों पर जमकर बरसीं थीं. बावजूद इसके वह यह नहीं कह पा रहीं कि उनके खिलाफ सख्ती से पेश आया जाए.

 



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