यह तो इंतहा है

Last Updated 25 Aug 2016 05:27:00 AM IST

इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जिस दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पार्टी की कोर ग्रुप की बैठक में पार्टी की पहचान राष्ट्रवाद को बताया और इसी लाइन पर चलने की बात कही, उसी दिन पूर्व सांसद रम्या 'पाकिस्तान को नरक न मानने' की बात कर राष्ट्रद्रोह के आरोप में घिर गई.


यह तो इंतहा है

बाकायदा अदालत में तहरीर देकर उनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह के तहत कार्रवाई की मांग की गई है. रम्या पर आरोप है कि पाकिस्तान को नरक नहीं कहकर उन्होंने \'भारतीय शहीदों का अपमान\' किया है. उनका यह बयान तथाकथित राष्ट्रवादियों को शायद इसलिए चुभ रहा है कि कुछ दिन पहले ही रक्षा मंत्री ने कहा था कि पाकिस्तान जाना नरक जाने के समान है.

क्या इतनी-सी बात किसी पर भी देशद्रोह के मुकदमा चलाने तक की मांग करने लायक पर्याप्त वजह हो सकती है? इसे नये सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है. वैसे भी रम्या का यह बयान देशभक्तों का अपमान कैसे हो गया? बहस इस पर करने की जरूरत है. यह तो संकुचित विचार और दृष्टि की इंतहा है.

मान लिया जाए कि रम्या के बयान पर ऐसी तीव्र प्रतिक्रिया इसलिए भी हुई क्योंकि इसके पहले बलूचिस्तान के उन नेताओं के खिलाफ पाकिस्तान में देशद्रोह का मामला दायर किया गया है, जिन्होंने मोदी के बयान की प्रशंसा की थी. सो, भारत में भी कुछेक लोगों ने अपनी तरफ से मान लिया कि उनको भी इसी तरह की प्रतिक्रिया देने का हक है. जैसा को तैसा व्यवहार देश हित में है.

हालांकि वह यह करते हुए एक बड़े अंतर को मिटा दे रहे हैं कि भारत पाकिस्तान नहीं है. भारत एक उदार विचार-भावना वाला लोकतांत्रिक देश है. उसकी प्रतिक्रिया एक अफसल देश की तरह नहीं हो सकती. वैसे रम्या का सामान्य बयान है. उससे देशभक्ति या राष्ट्रवाद को एक खरोंच तक नहीं लगती है. यह किसी भी तरह से देशद्रोह नहीं है. वैसे भी भारतीयता की भावना इतनी कमजोर नहीं कि हल्की-सी छुअन से चकनाचूर हो जाए.

इसलिए सबसे पहले देशद्रोह की परिभाषा को और परिमार्जित करने की जरूरत है. यह काम विद्वतजनों के साथ ही जनप्रतिनिधियों का भी है. उनको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस तरह की भावना को किसी भी स्तर पर प्रश्रय नहीं दिया जाना चाहिए.

 



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