महंगाई पर नूराकुश्ती

Last Updated 30 Jul 2016 05:24:12 AM IST

महंगाई पर देश में शुरू से ही सियासत होती रही है. यहां तक कि सरकारें भी गिरी है. बृहस्पतिवार को भी संसद में महंगाई को लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की.


महंगाई पर नूराकुश्ती

मजाकिया लहजे में ‘अरहर मोदी’ का नारा भी दिया. लेकिन इस मजाक की गंभीरता को देश की जनता से बेहतर कोई महसूस नहीं कर सकता. यह वही तबका है, जो 2014 में भाजपा के लिए न्योछावर हो गई.

सिर्फ इसी उम्मीद में की कांग्रेस के दस साल के शासन से उपजी तमाम सड़ांध को भाजपा की सरकार ही छूमंतर कर सकती है. मगर दो साल से ज्यादा हो गए, भाजपा गठबंधन को सत्ता सुख भोगे. बेहतरी की आस में जी रही जनता का भरोसा शायद वर्तमान सरकार से शैन:-शैन: टूट रहा है.

जनता जो सपने आने वाले दिनों की बुन रही थी, वह छिन्न-भिन्न होती दिख रही है. यह विश्वास अचानक से नहीं दरका है. दरअसल, नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले ताल ठोककर महंगाई कम करने का वादा किया था, आज की तस्वीर उससे बिल्कुल उलट है. सबसे ज्यादा परेशानी का सबब दालों की कीमत है. दालों के दामों में जहां तीन गुना की वृद्धि हुई है, वहीं आलू और बाकी सब्जियों की कीमतों में भी दोगुना बढ़ोतरी देखी गई है. अगर इसे विकास की संज्ञा दी जाएगी तो तकलीफ की बात है. और मोदी की सरकार यही कर रही है.

एक बार को यह मान भी लें कि महंगाई को लेकर नारे गढ़ना आंकड़ों का विकल्प नहीं है. फिर भी यह तो गंभीर चिंता की बात है कि गरीब जनता की दाल-रोटी के लिए सरकार ने क्या योजना तैयार की है.

यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रो पदार्थ की कीमतों में कमी का फायदा सरकार अपने भंडार भरने में तो कर रही है. किंतु इसका फायदा जनता को कैसे मिले, इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा. तो, सरकार इस लांछन से नहीं बच सकती कि हमें तो महंगाई की ऊंची दर संप्रग सरकार से विरासत में मिली थी या सब्जियों की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी की वजह मानसून है. सरकार को जमाखोरों पर कार्रवाई को लेकर ज्यादा सख्ती दिखानी होगी.

मांग और आपूर्ति के फासले को सरकार से ज्यादा तेजी से व्यापारियों ने भांप लिया. नतीजतन दाल की कीमतें आसमान छूने लगीं. वैसे, आरोप-प्रत्यारोप के बीच बढ़ती महंगाई की असली तस्वीर को समझना आसान नहीं है. हर दल सत्ता में आने के बाद इसी नुस्खे को आजामाता है. वह जनता के बारे में सोचने के दिखावे तो करता है. मगर जनता के दुख हरने की कला किसी दल को नहीं आती है.



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