फिर चीनी घुसपैठ
यह प्रश्न देश में बराबर उठता रहता है कि आखिर चीनी घुसपैठ से किस तरह निपटा जाए? क्या किया जाए जिससे चीनी सैनिकों का समय-समय पर घुसपैठ रु क जाए?
फिर चीनी घुसपैठ |
इसका कोई युक्तिसंगत उत्तर हमारे पास नहीं है.
यह दोनों देशों की सीमा पर गश्त लगाने वाले सुरक्षा बलों पर निर्भर है कि वे एक दूसरे के क्षेत्रों का सम्मान करते हुए या जो विवादित हैं, उनका ध्यान रखते हुए वहां तक कम-से-कम हथियारों के साथ न जाएं.
पिछले 19 जुलाई को चीन के सैनिकों को भारत की सीमा के भीतर उत्तराखंड के चमोली जिले में हथियारों से लैस डेरा डाले देखा गया, जबकि दोनों देशों के बीच इस क्षेत्र को विसैन्यीकृत रखने पर सहमति है. जब भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के अधिकारियों सहित कुछ अन्य टीम चमोली के जिलाधिकारी की अगुवाई में बाराहोती मैदान का निरीक्षण करने गई तो चीनी सेना ने उन्हें यह कहते हुए वापस भेज दिया कि यह उनका इलाका है.
करीब 80 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला बाराहोती मैदान 1957 से ही दोनों देशों द्वारा एक विवादित भाग माना जाता रहा है. इस विवाद को दोनों पक्षों द्वारा वार्ता के जरिए सुलझाए जाने पर सहमति बनी थी. दोनों पक्ष 1958 में ही इस बात पर सहमत हुए थे कि वे इस इलाके में अपने सैनिक नहीं भेजेंगे.
लेकिन चीन इसका समय-समय पर अपनी इच्छानुसार उल्लंघन करता रहता है. पिछले कुछ सालों से चीनी सैनिकों को इस इलाके में देखा जाता रहा है और कई बार उन्होंने वायु सीमा का भी उल्लंघन किया है. हालांकि इस समय चीनी सेना वहां से वापस चली गई है, लेकिन यह गंभीर मसला है. भारत के लिए चीनी सैनिकों की घुसपैठ का निदान तो सीमा विवाद के निपटारे में है.
मगर लगता नहीं कि चीन की इसमें कोई रुचि है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत की चिंता स्वाभाविक है. यह विषय केंद्र का है. केंद्र सरकार ने इसका संज्ञान लिया है और कहा है कि रिपोर्ट आने के बाद उचित कार्रवाई होगी. उचित कार्रवाई का अर्थ होता है दोनों ओर के सैन्य अधिकारियों के बीच विषय को उठाना तथा आवश्यक होने पर राजनीतिक नेतृत्व के समक्ष भी. भारत को पूरी गंभीरता से चीन के सामने यह विषय रखना चाहिए.
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