नई राह पर लौह महिला
लौह महिला इरोम शर्मिला चानू के सोलह साल से चल रहे अनशन को तोड़ने से सबसे ज्यादा राहत केंद्र सरकार महसूस कर रही है.
नई राह पर लौह महिला |
कारण यह कि पूर्वोत्तर में सशस्त्र बलों को मिले अतिरिक्त अधिकार यानी कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) के खिलाफ वर्ष 2000 से भूख हड़ताल कर रहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता शर्मिला ने अपने आंदोलन से विश्व भर के सत्ता केंद्र और संगठनों का ध्यान इस निर्दयी कानून की तरफ खींचा था.
लेकिन अब उन्होंने अपने अहिंसात्मक आंदोलन को नए तरीके से अंजाम देने का मन बना लिया है. शर्मिला अब सिस्टम में शामिल होकर इस संवेदनहीन कानून की वापसी का रास्ता तय करने की सोची हैं. शर्मिला ने ऐलान किया किया कि वह 9 अगस्त को अपना अनशन खत्म करेंगी और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में शिरकत करेंगी.
दरअसल, अफ्सपा की वापसी को लेकर इतने लंबे समय से अन्न का त्याग करने वाली शर्मिला को इस बात की तकलीफ है कि जहां सरकार इस कानून को हटाने के बारे में चुप्पी साधी है वहीं मणिपुर की जनता और तमाम नागरिक संगठन भी उदासीन हैं. तो क्या शर्मिला के अनशन तोड़ने की अहम वजह यही है. हो सकता है, शर्मिला इस वजह से थक-हार गई हों, किंतु सिस्टम से लड़ना हर किसी के बस की बात नहीं है.
चाहे, बात अरविंद केजरीवाल की हो, या आईएएस संजीव चतुर्वेदी की या हरियाणा के वरिष्ठ आईएएस अशोक खेमका की हो. हर किसी ने सिस्टम में व्याप्त गंदगी को साफ करने का साहस दिखाया, वो लड़े भी. मगर तंत्र के मकड़जाल में ऐसे उलझे कि फिर उनकी लड़ाई की धार कुंद हो गई. हां, केजरीवाल ने सियासत की राह चुनी. वैसे, शर्मिला के अनशन तोड़ने के ऐलान की एक वजह उनके विवाह बंधन में बंधने को भी माना जा रहा है.
उनका एक ब्यॉय फ्रेंड है और इस अनशन को खत्म कराने में उनकी महती भूमिका है. वैसे, शर्मिला के इस निर्णय से सरकार को हिंसक और अलगाववादी गतिविधियों में शामिल लोगों को यह कहने का नैतिक बल तो मिला ही है कि उन्हें शर्मिला के फैसले का अनुसरण करना चाहिए और मुख्यधारा में शामिल होकर समस्या के समाधान की ओर बढ़ना चाहिए.
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