संवेदनहीन सेल्फी
महिला आयोग की आम तौर पर भूमिका किस कदर निर्मम हो चुकी है, इसकी बानगी राजस्थान महिला आयोग की अध्यक्ष और एक सदस्य की करतूतों ने जगजाहिर कर दिया है.
महिला आयोग की संवेदनहीन सेल्फी (फाइल फोटो) |
राज्य में कथित रेप पीड़ित के साथ सेल्फी खिंचवाने और इसकी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग ने पूरे मामले में संज्ञान लेने की सोची और जवाब-तलब किया. महिला आयोग के दो चेहरे हैं, जो यह बताने के लिए काफी हैं कि महिलाओं के अधिकारों की बात करने और उनके हितों की रक्षा करने वाला आयोग वास्तविकता में कितना संवेदनहीन है.
दरअसल, आयोग में महिलाओं की नियुक्ति बिल्कुल सियासी गुणा-गणित के आधार पर की जाती है. और पहले भी इसी गणित से होती भी रही है. लेकिन किसी रेप पीड़ित के साथ सेल्फी लेना तो न्याय को सूली से टांग देने के बराबर है. दूसरे चेहरे का जिक्र इस संदर्भ में समीचीन है; क्योंकि यह वही आयोग है जो एक्टर सलमान खान के रेप पीड़ित से जुड़े बयान पर उनकी बखिया उधेड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ता.
उन्हें समन जारी करता है और माफी मांगने को कहता है. तो, कैसे मान लिया जाए कि सेल्फी लेना रेप पीड़िता को न्याय दिलाने की कवायद थी या उसे सामान्य-सहज करने का प्रयास? यहां तो संवेदना दिखाने की जरूरत थी, पीड़ित को संबल, मानसिक शांति और कानून के दायरे में हरसभंव मदद देने की बात की जानी चाहिए थी, न कि सेल्फी लेने की. हां, राजस्थान आयोग की अध्यक्ष जो सेल्फी लेने के दौरान वहां मौजूद थीं, उन्हें \'बेनिफिट ऑफ डाउट\' के आधार पर बरी नहीं किया जा सकता. दोनों महिलाएं बराबर की दोषी हैं.
इस सेल्फी प्रकरण ने इस बात को साबित भी कर दिखाया है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा व अन्य अपराध को लेकर आयोग की भूमिका केवल रस्मी होकर रह जाती है. जहां पीड़िता आयोग के सदस्यों के लिए महज नुमाइश की चीज थी. ऐसा करने के बाद आयोग किस मुंह से दूसरों से अच्छे व्यवहार की उम्मीद करेगा? ऐसा भी नहीं है कि यह संवेदनहीनता आयोग की सदस्यों ने पहली बार सार्वजनिक की है.
इससे पहले एक अन्य राज्य की महिला आयोग की सदस्य ने पीड़ित का नाम प्रेस कांफ्रेंस में सार्वजनिक कर दिया था. ऐसी ही गलतियों को देखते हुए संसद की स्थायी समिति ने कहा था कि महिलाओं के संरक्षण में आयोग की कोई सक्रिय भूमिका नहीं दिखती. उम्मीद ही कर सकते हैं कि आगे ऐसी संवेदनहीनता न दिखेगी.
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