विरोध में जज
भारत में पहली बार ऐसा हुआ है कि जज इस तरह हड़ताल पर चले गए हों.
विरोध में जज (फाइल फोटो) |
दो साल पहले बने राज्य तेलंगाना के दो सौ जज सिर्फ इसलिए पंद्रह दिन की छुट्टी पर चले क्योंकि अनुशासनहीनता के आरोप में हैदराबाद हाईकोर्ट ने 11 जजों को सस्पेंड कर दिया. दरअसल, ताजा विवाद आंध्र में जन्मे 130 जजों के तेलंगाना में नियुक्ति का है.
सस्पेंड किए जाने की असली वजह इसी नियुक्ति का विरोध किया जाना है. लेकिन विरोध की सिर्फ एकमात्र वजह यह नहीं है. हड़ताली जजों के दो प्रमुख आरोप हैं. पहला, हैदराबाद हाईकोर्ट ने हाल में तेलंगाना के अदालतों में 130 जजों की भर्ती की है. इनका जन्म आंध्र प्रदेश में हुआ है.
भर्ती के वक्त तेलंगाना और आंध्र में जन्मे लोगों के लिए जरूरी अनुपात (40:60) का पालन नहीं किया गया. इसलिए ये भर्तियां अवैध हैं. दूसरा आरोप यह है कि हाईकोर्ट में भी कुल 21 जजों में से सिर्फ तीन तेलंगाना के हैं. बाकी आंध्र के हैं. यहां भी अनुपात सुधारने की जरूरत है. इससे कई बार निर्णय प्रभावित हो रहे हैं.
विशेषतौर पर 2014 के बाद किए गए दोनों राज्यों से जुड़े फैसलों में ये देखा गया है. ऐसा नहीं है कि जजों का इस तरह छुट्टी पर जाना नई बात है. 14 साल पहले 2004 में पंजाब हाईकोर्ट के 25 जज एक दिन की छुट्टी पर चले गए थे. लेकिन ताजा विवाद ज्यादा गंभीर है.
मसलन, जजों को सस्पेंड करने और दो सौ के छुट्टी पर जाने का असर यह हुआ है कि तेलंगाना के वकील भी जजों के समर्थन में उतर आए हैं. इसके चलते राज्य में न्यायिक कार्य किस कदर प्रभावित हुआ होगा, समझा जा सकता है. और अब यह सिर्फ अनुशासनहीनता का मसला भर नहीं है. तेलंगाना-आंध्र की राजनीतिक लड़ाई में जजों का शामिल होना जरूर अचरज पैदा करता है.
वैसे भी, राज्य विभाजन और संसाधनों पे हक जताने जैसे भावनात्मक मुद्दे कड़वी यादें ही पीछे छोड़ जाते हैं. यहां भी ऐसा ही कुछ होता दिखता है. एक विवाद, हाईकोर्ट के गठन को लेकर भी है. तेलंगाना का कहना है कि हमारे यहां हाईकोर्ट के गठन को लेकर केंद्र अड़ंगेबाजी लगाता है. यानी कि अब यह धीरे-धीरे विशुद्ध सियासी मसला बनता जा रहा है. समझदारी इसी में है कि केंद्र मामले में तत्काल दखल दे और विवादों का उचित हल निकाले.
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