एमटीसीआर में भारत
भारत एमटीसीआर यानी प्रक्षेपास्त्र तकनीक नियंत्रण व्यवस्था का पूर्ण सदस्य बन गया.
एमटीसीआर में भारत |
एनएसजी में मिली तत्कालिक विफलता के समय यह एक बड़ी कूटनीतिक सफलता के रूप में हमारे सामने आया है. हालांकि भारत का सदस्य बनना तो उसी दिन तय हो गया था जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका दौरे पर थे. सदस्यों को अपनी आपत्ति दर्ज कराने के लिए एक तिथि तय की गई थी और किसी की कोई आपत्ति आई नहीं.
संयोग से चीन उसका सदस्य नहीं है, अन्यथा वह यहां भी अड़ंगा डालता. एमटीसीआर की स्थापना मिसाइलों तथा मानवरहित टोही और युद्धक विमानों यानी प्रिडेटर ड्रोन के प्रसार को रोकने के लिए हुई थी. इसके सदस्यों को इनके व्यापार या आदान-प्रदान पर रोक नहीं है. हां मिसाइल की मारक दूरी 300 कि. मी. एवं क्षमता 500 किलोग्राम निश्चित किया गया है.
इसकी सदस्यता के बाद भारत उच्चस्तरीय मिसाइल तकनीक एवं अमेरिकी ड्रोन पा सकेगा. स्वयं रूस के साथ निर्मिंत ब्रह्मोस मिसाइल बेच सकेगा तथा शातिपूर्ण उद्देश्यों के लिए संवेदनशील तकनीकों का निर्यात भी कर सकेगा. इस व्यवस्था में शामिल होने का महत्व इस मायने में है कि पहली बार भारत विनाशकारी हथियारों के प्रसार पर रोक वाली किसी निर्यात निषेध संधि का सदस्य बना है. तो भारत के लिए यह एक नए युग की शुरुआत है.
एमटीसीआर में वे ही देश सदस्य हैं जो कि नाभिकीय अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कर चुके है. तो इसके बाद एनएसजी पर भारत के दावे को ज्यादा बल मिलेगा. यही नहीं जो दूसरी ऐसी संधियां है वासेनार और ऑस्ट्रेलिया समूह उनमें भी शामिल होने का रास्ता खुल गया है. चीन ने 2004 में इसकी सदस्यता के लिए आवेदन किया था लेकिन उसे मिला नहीं. अब अगर वह सदस्यता के लिए आता है तो उसने जो एनएसजी में किया है उसका जवाब देने की स्थिति में भारत होगा.
इसलिए एमटीसीआर में भारत की सदस्यता के बाद चीन एनएसजी में अपने विरोधी रवैये को लेकर पुनर्विचार करने को बाध्य हो सकता है. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि इस ग्रुप में शामिल होने से भारतीय कूटनीति की सफलता का जायका मजेदार बन गया है. साथ ही यह संधि भारत के लिए सफलता के नए द्वार तो खोलती ही है.
नि:संदेह इस सफलता से केंद्रीय नेतृत्व का आत्मविश्वास जरूर मजबूत हुआ होगा, जोकि एनएसजी में मिली कूटनीतिक हार से टूट सा गया था. उम्मीद है, एनएसजी का सफर भी देश जल्द तय करेगा.
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