जुमलेबाजी या संकल्प
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में जनता द्वारा बड़ी मात्रा में जमा किए गए अघोषित रकम के बारे में बात की. 2014 के आम चुनाव के बाद मोदी ने एक बार फिर कालाधन के बारे में अपने विचार सार्वजनिक किए हैं.
जुमलेबाजी या संकल्प |
उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि सितंबर माह तक अपने छिपाए रकम का खुलासा अगर कोई करता है तो वह कानूनी शिकंजे से बच सकेगा. मतलब साफ है कि मोदी एक बार फिर कालाधन को लेकर जनता के बीच आने का मन बना चुके हैं.
मोदी को यह बात अच्छे से पता है कि कालाधन का मसला तकरीबन 60 फीसद से ज्यादा जनता के दिल के करीब है. इस लिहाज से इस भावनात्मक मुद्दे को एक बार फिर छेड़ने में कोई बुराई नहीं है.
हां, फिलवक्त इस ज्वलंत मुद्दे को उठाना चौंकता जरूर है. अगले साल सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश समेत पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव होने हैं. हो सकता है, मोदी एक बार फिर इन चुनाव में काला धन के मसले को हवा दें. लेकिन प्रधानमंत्रक्ष मोदी को यह समझना होगा कि काठ की हांडी बार-बार चढ़ती नहीं है.
इसलिए इस बार आम जनता इसके सार्थक परिणाम की उम्मीद करेगी क्योंकि कालाधन के मसले पर मोदी सरकार की सबसे ज्यादा किरकिरी हो रही है. कालेधन पर बने विशेष जांच दल के प्रमुख का भी मानना है कि मौजूदा समय में सरकार द्वारा कालाधन का खुलासा करने के लिए शुरू की गई एक बार की अनुपालन खिड़की के तहत बिना कर चुकाई संपत्ति का खुलासा नहीं करना ‘मुश्किल’ हो जाएगा.
संकेत साफ हैं कि कालाधन के खुलासे की मियाद तय करने का बयान सतही नहीं बल्कि सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. जानकारों का कहना है कि 80 प्रतिशत कालाधन देश में ही है और इसका केवल 10-20 प्रतिशत विदेश में है. सबसे ज्यादा कालाधन खनन, सोना, जमीन, राजनीति और मादक पदार्थ में है.
अगर इन पांच क्षेत्रों में कालेधन पर लगाम कसें तो फायदेमंद होगा. अगर कालाधन को परिभाषित करना चाहें तो हमें कई पहलुओं से इसे जानने का मौका मिलता है लेकिन मोटे तौर पर कहें तो तार्किक न ठहरा सकने वाली आय यानी जिस आय का स्रोत बताने में वैधानिक प्रावधान आड़े आता हो, उसे हम कालाधन कह सकते हैं. आजादी के बाद से कालाधन को लेकर जब-तब माहौल बनता रहा है. लेकिन स्थिति ज्यादा तब गंभीर लगने लगी जब राजनीति में इसका इस्तेमाल होने लगा. उम्मीद करें कि इस बार यह महज जुमलेबाजी नहीं होगी.
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